जब बात छठ पूजा, एक प्राचीन हिन्दू त्योहार है जो सूर्य देवता को अर्घ्य देने के लिए मनाया जाता है, सूर्य अर्घ्य पर्व की आती है, तो कई सवाल दिमाग में आते हैं—कैसे, कब, और क्यों? इस लेख में हम छठ पूजा के प्रमुख पहलुओं को समझेंगे, साथ ही इस साल के समाचार, सरकारी घोषणाएँ और स्थानीय कहानियों को भी उजागर करेंगे।
सबसे पहले सूर्य देवता, प्रकाश और जीवन की शक्ति के प्रतीक हैं को अर्घ्य देना ही इस त्यौहार की आत्मा है। छठिया लोग नदी या तालाब के किनारे खड़े होकर जल में सूर्य को अर्घ्य देते हैं—जिसे संध्या अर्घ्य कहा जाता है। यहाँ नारियल, घी और गंगा जल का प्रयोग होता है, जिससे सूर्य की अर्घ्य-प्रस्तुति में शुद्धता आती है। यह रिवाज़ सूर्य को धन्यवाद देने और जीवन की ऊर्जा को नवीनीकृत करने का तरीका माना जाता है।
छठ पूजा में तीन मुख्य चरण होते हैं: नाकायन, उपवास और शुद्ध स्नान की प्रक्रिया, संध्या अर्घ्य, सूर्य अस्त होने पर अर्घ्य देना और उषा अर्घ्य, सूर्य उगने पर अर्घ्य करके समाप्ति। नाकायन में व्रती केवल एक कौर भर पानी और फलों का सेवन करते हैं, जिससे शरीर शुद्ध रहे। संध्या अर्घ्य में पीता, कलेवा और काशी की पोटली लादकर जल में अर्घ्य दिया जाता है। उषा अर्घ्य में फिर से वही चरण दोहराया जाता है, यह छठिया के लिए पूर्णता का प्रतीक है।
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में छठ पूजा सबसे धूमधाम से मनाई जाती है। इस साल, बिहार सरकार ने कच्चे तेल के दाम में गिरावट और जल स्रोतों के संरक्षण को ध्येय बनाते हुए विशेष नियम जारी किए। कई मीडिया रिपोर्टों में बताया गया कि छठिया लोग अब प्लास्टिक बोतलें नहीं उपयोग कर रहे, बल्कि पारंपरिक काठ की थैलियों और मिट्टी के बर्तन अपनाए हैं। यह बदलाव न सिर्फ पर्यावरण के लिए अच्छा है, बल्कि अर्घ्य में प्रयुक्त जल को भी शुद्ध बनाता है।
छठ पूजा के साथ जुड़े सामाजिक पहलू को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कई सामाजिक संगठनों ने गरीबी में रहने वाले परिवारों को अर्घ्य सामग्री—नारियल, दही, घी—उपलब्ध कराकर समानता बढ़ाने का प्रयास किया। इस साल, पटना में एक युवा समूह ने स्वरुप में "छठ आवाज़" नामक अभियान चलाया, जिसमें उन्होंने स्थानीय कलाकारों को शिल्प और गीतों के माध्यम से उत्सव की संस्कृति को युवा वर्ग तक पहुंचाया। यही कारण है कि छठ पूजा अब केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक विकास का भी एक मंच बन गया है।
वर्तनी और भाषा के लिहाज़ से भी छठ पूजा की जड़ें गहरी हैं। कई कवियों ने इस त्यौहार को लेकर शायरी और लोकगीत लिखे हैं। बीते साल के कुछ प्रमुख कवियों की रचनाएँ आज भी सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं, जहाँ लोग अपने भावनाओं को "छठ के गीत" के रूप में व्यक्त करते हैं। ये कविताएँ न केवल आध्यात्मिक जुड़ाव का परिचायक हैं, बल्कि सांस्कृतिक पहचान भी बनाती हैं।
छठ पूजा के दौरान विशेष भोजन भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कच्चा भुजिया, भुने हुए चने के आटे से बने हलके स्नैक और सूर्य फेवर, सूर्य को अर्पित किया गया मीठा व्यंजन मुख्य रूप से तैयार किए जाते हैं। ये व्यंजन न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि उपवास के दौरान भी ऊर्जा प्रदान करते हैं। आज के समय में, कई रेस्टोरेंट और होम किचन इन व्यंजनों को ऑनलाइन ऑर्डर के रूप में उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे उत्सव और भी सुगम हो रहा है।
संक्षेप में, छठ पूजा सिर्फ सूर्य अर्घ्य नहीं, बल्कि एक समग्र सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक प्रथा है। इस पेज पर आप कई अलग-अलग लेख पाएँगे—भौगोलिक रिपोर्ट, सरकारी नीतियों की चर्चा, स्थानीय कहानियाँ, और रिहर्सल गाइड। आगे बढ़ते हुए, आप इन लेखों में छत्तीसगढ़ की अलग शैली, उत्तर प्रदेश में धूमधाम, और बिहार के ग्रामीण इलाकों में अद्भुत दृश्यों का विस्तृत विश्लेषण देखेंगे। तो चलिए, इस यात्रा को शुरू करते हैं और छठ पूजा की विविधता को करीब से समझते हैं।
कानपुर के डीएम जितेंद्र प्रताप सिंह ने छठ पूजा 2025 की तैयारी में प्रमुख घाटों का कठोर निरीक्षण किया, सुरक्षा, सफ़ाई और इंटीग्रेटेड कमांड सेंटर के आदेश जारी किए।