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आयात शुल्क – क्या है और क्यों महत्त्वपूर्ण?

जब आप आयात शुल्क, सरकार द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर, जिसे कस्टम ड्यूटी भी कहा जाता है. इम्पोर्ट टैक्स की बात करते हैं, तो इसका असर सीधे आपके खरीद मूल्य, उत्पादन लागत और उद्योग प्रतिस्पर्धा पर पड़ता है। ये शुल्क केवल राजस्व जुटाने के लिए नहीं, बल्कि घरेलू उद्योग की रक्षा, व्यापार संतुलन बनाए रखने और नीतिगत उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भी उपयोगी होते हैं.

आइए देखें इस उपाय के मुख्य घटक—कस्टम ड्यूटी, वस्तु के वर्ग, मूल्यांकन और उपयोग पर आधारित कर दर, वित्त मंत्रालय, आयात शुल्क की दर तय करने और संग्रह के नियम बनाता है और वाणिज्य नीति, देशी उत्पादन को प्रोत्साहित करने या निर्यात को सहारा देने के लिए आयात शुल्क का स्तर निर्धारित करती है. इन तीनों के बीच का संबंध ऐसा है: वित्त मंत्रालय नीति‑निर्माताओं को दिशा देता है, वाणिज्य नीति मांग और आपूर्ति के संतुलन को नियंत्रित करती है, और कस्टम ड्यूटी वास्तविक कर रूप में लागू होती है.

आयात शुल्क कैसे गणना होता है?

गणना का मूल सिद्धांत सीधा है—वस्तु का कस्टम मूल्यांकन (CIF) लेकर उस पर दर लागू की जाती है। उदाहरण के लिए, अगर कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान 50,000 रुपये के CIF पर आयात किया जाता है और उस पर 10% आयात शुल्क निर्धारित है, तो कुल आयात शुल्क 5,000 रुपये होगा। लेकिन अक्सर GST (गुड़्स्ट) भी जुड़ जाता है, जिससे अंतिम राशि बढ़ जाती है। यही कारण है कि आयातकर्ता को पहले से योजना बनानी पड़ती है; नहीं तो अनपेक्षित खर्च से फायदा घट सकता है.

एक और महत्वपूर्ण पहलू विशेषाधिकार/छूट है। कुछ वस्तुओं के लिए सरकार निर्यात प्रोत्साहन, न्यूनतम उत्पादन लागत, या रणनीतिक कारणों से रिवियेज़ या कम दरें देती है। इस छूट को प्राप्त करने के लिए आयातकर्ता को दस्तावेज़ी पुष्टि, लाइसेंस या प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना पड़ता है। इसके बिना मानक दर लागू होगी, जिससे लागत में बड़ा अंतर आ सकता है.

अब बात करते हैं कि ये सब आपके रोज़मर्रा के जीवन में कैसे दिखता है। जब आप विदेशी ब्रांड का मोबाइल या कपड़ा खरीदते हैं, तो वह कीमत में ही आयात शुल्क, GST और संभावित कस्टम क्लियरेंस फीस जुड़ जाती है। इसलिए अक्सर हम देखते हैं कि वही प्रोडक्ट भारत में विदेश के मुकाबले महंगा क्यों आता है। यही कारण है कि कई व्यवसाय आयात-निर्माण (इम्पोर्ट‑मन्युफैक्चरिंग) मॉडल अपनाते हैं—पहले आयात करके फिर स्थानीय स्तर पर असेंबली या रीसाइक्लिंग करके कर बचाते हैं.

इसी प्रकार, छोटे व्यापारियों और स्टार्ट‑अप्स को भी आयात शुल्क की समझ जरूरी है। उचित योजना से वे अपने प्रोडक्ट की कीमत को प्रतिस्पर्धी रख सकते हैं और साथ ही सरकार की निर्यात‑उत्साहित करने वाली नीति से भी लाभ उठा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, ‘मेड इन इंडिया’ रणनीति के तहत कई कंपनियां अब घटकों को आयात करती हैं, असेंबल करके अंत में कस्टम ड्यूटी बचाती हैं, तथा सरकार द्वारा दी गई विभिन्न छूटों का फायदा उठाती हैं.

सारांश में, आयात शुल्क केवल एक कर नहीं, बल्कि व्यापार वातावरण, घरेलू उत्पादन, विदेशी मुद्रा बचत और राजस्व के बहुआयामी उपकरण है। वित्त मंत्रालय, कस्टम ड्यूटी और वाणिज्य नीति आपस में गहरी तालमेल से इसे लागू करते हैं, और GST जैसे अतिरिक्त कर इसे पूरा करते हैं। अगर आप आयात में रुचि रखते हैं या सिर्फ रोज़मर्रा की खरीदारी में समझना चाहते हैं कि कीमत क्यों बढ़ी, तो इन मूलभूत बातों को याद रखिए.

आगे आप इस टैग के तहत कई लेख देखेंगे—कुछ में नवीनतम आयात शुल्क दरें, कुछ में विशेष छूट की प्रक्रिया, और कुछ में केस स्टडीज की मदद से कैसे लागत घटा सकते हैं, इसका व्यावहारिक चित्रण है। इन लेखों को पढ़ते हुए आप अपनी आयात रणनीति को और सुदृढ़ बना पाएंगे.

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