बजट हर साल आपकी नौकरी, कारोबार और बचत पर असर डालता है। तो क्या होना चाहिए और आप किस तरह से तैयार रह सकते हैं? नीचे सीधी भाषा में वही बताता हूँ जो असल में काम का है — राजनीति या कोई लंबी बातें नहीं।
पहली चीज़: कर नीति। सरकार अक्सर मध्यवर्ग और छोटे उद्यमों के लिए राहत देने या टैक्स ब्रैकेट में सुधार करने पर विचार करती है। अगर आप सैलरी वाले हैं तो स्टैंडर्ड डिडक्शन, टीडीएस दरों और HRA/फोनेटिक नियमों में संभावित बदलाव देखें।
दूसरी चीज़: सार्वजनिक निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर। कैपेक्स बढ़ा तो बुनियादी ढांचे, निर्माण और स्टील-सिमेंट जैसे सेक्टर में नौकरी व शेयरों में असर दिखेगा।
तीसरी चीज़: सहायक योजनाएँ और सब्सिडी। किसान, ग्रामीण विकास और स्वास्थ्य पर अनुमानित खर्च का हिसाब देखें — ये सीधे उन क्षेत्रों की खरीद शक्ति पर असर डालते हैं।
चौथी चीज़: बैंकिंग और वित्तीय नियम। बेसिक बैंकिंग नीतियाँ, दिवालियापन नीतियाँ और PSU डिसइंवेस्टमेंट की घोषणाएँ निवेशकों के लिए महत्वपूर्ण होंगी।
1) दस्तावेज़ व्यवस्थित करें: Form 16, 26AS, बैंक स्टेटमेंट और निवेश रसीदें छाँट लें। ऑडिट या टैक्स फाइलिंग से पहले ये काम तेज़ करता है।
2) टैक्स बचत रीव्यू करें: 80C की लिमिट, NPS, HRA, ELSS जैसे विकल्पों को परखें। अगर बजट में कर छूट बदलने की खबर है तो तुरंत निर्णय लें।
3) निवेश पोर्टफोलियो चेक करें: बजट के संकेतों से सेक्टर्स प्रभावित होंगे — इंफ्रा, हरित ऊर्जा, स्वास्थ्य या बैंकिंग। जोखिम और समय-सीमा के हिसाब से रिइलान्स करें, लेकिन पैनिक में बेचने से बचें।
4) आपातकालीन फंड रखें: बजट का असर कुछ महीनों में दिखता है। 3-6 महीने का फंड सुरक्षित रखने से किसी शॉक में मदद मिलेगी।
5) छोटे कारोबारी और फ्रीलांसर ध्यान दें: GST, इनपुट क्रेडिट और कार्यशील पूंजी पर संभावित नियमों का असर पड़ सकता है। बैंक कर्ज और सब्सिडी-फाइलिंग समय पर रखें।
अंत में एक सटीक टिप: बजट पेश होते ही आधिकारिक दस्तावेज और सरकार के नोट्स पढ़ें। सुर्खियाँ तेज़ होती हैं, पर असली बदलाव उन्हीं दस्तावेजों में मिलेंगे। अगर जरूरी लगे तो टैक्स अडवाइजर या वित्तीय सलाहकार से बात कर लें — छोटे बदलावों की वजह से बड़े फैसले लेने से पहले एक बार सही जानकारी ले लेना फायदेमंद रहता है।
भारत का मिडिल क्लास वर्ग यूनियन बजट 2025 का बेसब्री से इंतजार कर रहा है, जिसमें उन्हें महत्वपूर्ण आयकर राहत की उम्मीद है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से उम्मीद है कि वे इस वर्ग के सामने आने वाली बढ़ती वित्तीय दबावों को ध्यान में रखते हुए उपाय करेंगे। उम्मीदें इसमें शामिल हैं: मौलिक छूट सीमा को 5 लाख रुपए तक बढ़ाना, कर स्लैब में सुधार करना, और होम लोन, बचत एवं चिकित्सा खर्च के लिए कटौती में वृद्धि।