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दिवाली यात्रा: घर लौटने की भावना, यात्रा के रास्ते और त्योहार की असली जिम्मेदारी

दिवाली यात्रा एक दिवाली, भारतीय संस्कृति का सबसे चमकदार त्योहार, जो अंधेरे पर प्रकाश की जीत मनाता है का हिस्सा है, लेकिन इसकी असली गहराई उस यात्रा में छिपी है जो लाखों लोग अपने घर की ओर करते हैं। यह सिर्फ ट्रेन या बस का सफर नहीं, बल्कि एक घर लौटना, जहाँ यादें, रिश्ते और रसोई की खुशबू एक साथ जुड़ जाती हैं की भावना है। जब आप दिल्ली से बिहार या मुंबई से उत्तर प्रदेश की ओर जाते हैं, तो आप सिर्फ एक शहर से दूसरे शहर नहीं जा रहे — आप अपने बचपन के एक पल की ओर बढ़ रहे हैं।

यह यात्रा कभी-कभी बहुत मुश्किल होती है। टिकट नहीं मिलना, ट्रेन देरी करना, बस में भीड़ — ये सब दिवाली के साथ आते हैं। लेकिन फिर भी, लोग यही यात्रा करते हैं। क्यों? क्योंकि दिवाली का मतलब बिना घर के नहीं होता। त्योहार यात्रा, एक ऐसी परंपरा जो आधुनिक जीवन के बीच भी अपनी जड़ें गहरी रखती है आपको याद दिलाती है कि आप कहाँ से आए हैं। यही वजह है कि भारत के हर कोने से लोग अपने गाँव, अपने घर की ओर निकल पड़ते हैं — चाहे वो अमेरिका से हों या दुबई से।

इस यात्रा के साथ आती है एक जिम्मेदारी। आपको घर पर बने दीये जलाने हैं, दादी को चांदी का बर्तन देना है, भाई-बहनों के साथ बातें करनी हैं। दिवाली सिर्फ रॉकेट्स और लड्डू का त्योहार नहीं, ये एक भारतीय संस्कृति, जिसमें परिवार, सम्मान और रिश्तों की अहमियत केंद्र में है की जीवंत झलक है। जब आप अपने घर लौटते हैं, तो आप उस त्योहार को जीते हैं — जो बिना घर के अधूरा है।

इस पेज पर आपको ऐसे ही कहानियाँ मिलेंगी — जहाँ दिवाली यात्रा के रास्ते में लोगों की जिंदगी बदल गई, जहाँ ट्रेन में एक अजनबी ने एक बच्चे को लड्डू दिया, जहाँ एक बेटी ने अपने पिता के लिए बिना बताए घर लौटकर दीया जलाया। ये कहानियाँ सिर्फ दिवाली की नहीं, बल्कि उस गहरी भावना की हैं जो हर भारतीय के दिल में बसती है।

दक्षिण रेलवे ने दिवाली के लिए तम्बारम-सेंगोट्टई विशेष ट्रेन चलाई, जो मेलमरुवथूर स्टेशन पर रुकती है। यह भक्तों की यात्रा को सुगम बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।