कुर्बानी सिर्फ जानवर काटने का रिवाज नहीं है — यह श्रद्धा, आत्म-त्याग और जरूरतमंदों से बाँटने का संदेश है। कभी सोचा है कि त्योहार के दिन सही तरीके से तैयार रहकर हम कैसे खर्च और असुविधा कम कर सकते हैं? नीचे सरल, उपयोगी और सीधे तरीके बताए गए हैं ताकि आपका उत्सव स्वच्छ, सुरक्षित और इज्जत के साथ हो।
कुर्बानी आमतौर पर इस्लामी कैलेंडर के ज़ुल-हिज्जा महीने में ईद उल-अधा के दिन और अगले दो दिनों में की जाती है। शरिया के अनुसार जानवर स्वस्थ और निर्धारित उम्र का होना चाहिए; कटने से पहले उसकी अच्छी देखभाल जरूरी है। धार्मिक तौर-तरीके (हलाल तरीका) और स्थानीय कानून दोनों का पालन करना आवश्यक है — इसलिए मस्जिद या स्थानीय धर्मशाला के निर्देशों को ध्यान में रखें।
आम तौर पर मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक अपने परिवार के लिए, एक रिश्तेदारों और मित्रों के लिए, और एक जरूरतमंदों के लिए। यह प्रथा समुदाय में समानता और मदद को बढ़ाती है। अगर आप स्वयं कुर्बानी नहीं कर सकते तो कई भरोसेमंद संस्था‑आधारित प्रोग्राम आपके नाम पर कुर्बानी कर देते हैं और प्रमाण पत्र भी देते हैं।
भारत में अलग-अलग राज्यों के अपने नियम होते हैं—खासकर पशु कटाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़े। क्या करना चाहिए? पहले स्थानीय निकाय से अनुमति और समय की जानकारी लें। सार्वजनिक जगहों पर कटाई से बचें; लाइसेंसधारी स्लॉटर हाउस या धर्मार्थ संगठनों की सुविधाएँ बेहतर रहती हैं।
खरीदते समय चेकलिस्ट रखने से काम आसान होगा: जानवर स्वस्थ हो, वेटरनरी सर्टिफिकेट हो तो बेहतर, ट्रांसपोर्ट सुरक्षित हो और काटने की जगह साफ-सुथरी। दिन के लिए जरूरी सामान साथ रखें—दस्ताने, तेज चाकू, अलग कटिंग बोर्ड, क्लीनर और फ्रिजिंग बैग। कटाई के बाद मांस तुरंत ठंडा करके रख दें; ऐसे मांस को 24–48 घंटे के भीतर बाँटना या पकाकर बांटना अच्छा रहता है।
दान करने की सोच रहे हैं तो स्थानीय मस्जिद, एनजीओ या रेगुलर चैरिटी से जुड़कर प्रमाणित व्यवस्था चुनें। यह न केवल कानून के मुताबिक होगा बल्कि रिसीवर तक फल-सब्जी और मांस सुरक्षित तरीके से पहुँचता है। पर्यावरण का ध्यान भी रखें: जानवर के अवशेषों का सही निस्तारण, खाद या विशेष कचरा प्रबंधन से गंदगी और बदबू से बचा जा सकता है।
अंत में एक छोटा टिप: ज्यादा खरीदने की बजाय सही योजना बनाएं—रिश्तेदारों और पड़ोसियों से पहले से बात कर लें कि कितनी हिस्सेदारी चाहिए। इससे आप फालतू बर्बादी रोकेंगे और जरूरतमंदों तक बेहतर मदद पहुँचा पाएंगे। कुर्बानी का असली मकसद बांटना और मदद करना है—इसी को सरल और जिम्मेदार तरीके से निभाइए।
ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद भी कहा जाता है, इस्लामी कैलेंडर का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। 2024 में यह रविवार, 16 जून को सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, क़तर और अन्य पश्चिमी देशों में मनाया जाएगा, जबकि भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में यह एक दिन बाद, 17 जून को मनाया जाएगा। इस त्योहार को पैगंबर इब्राहिम की परंपरा से जोड़ा जाता है और इसमें कुर्बानी दी जाती है।