ईद-उल-अजहा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, इस्लाम धर्म में मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों में से एक है। इसे 'कुर्बानी का त्योहार' भी कहा जाता है। बकरीद का त्योहार मुसलमानों के लिए खास महत्व रखता है और इसे एकता, बलिदान और भक्ति के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार इस्लामी कैलेंडर के अनुसार धू अल-हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाया जाता है।
2024 में, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, जोर्डन, कुवैत, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में ईद-उल-अजहा 16 जून, रविवार को मनाई जाएगी। जबकि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, दक्षिण अफ्रीका और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में यह एक दिन बाद 17 जून, सोमवार को मनाई जाएगी। यह असमानता चंद्रमा के दर्शन के कारण होती है, जो इन देशों में 7 जून को देखा जाएगा।
ईद-उल-अजहा पैगंबर इब्राहिम और उनके बेटे इश्माएल की कथा से जुड़ा हुआ है। पवित्र कुरान के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम ने अल्लाह के आदेशनुसार अपने बेटे इश्माएल की कुर्बानी देने के लिए अपनी तत्परता दिखाई थी। यह पैगंबर इब्राहिम की अल्लाह के प्रति समर्पण और भक्ति का प्रतीक है। अल्लाह ने इब्राहिम की भक्ति को सराहा और उनके बेटे को बचा लिया। उसके स्थान पर एक भेड़ को कुर्बान किया गया था। इस अद्वितीय घटना को याद करने के लिए, मुसलमान इस दिन जानवरों की कुर्बानी करते हैं।
बकरीद के अवसर पर, मुसलमान अपने सबसे अच्छे कपड़े पहनते हैं और नमाज अदा करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं। इसके बाद कुर्बानी दी जाती है, जो एक भेड़, बकरी, गाय या ऊंट हो सकता है। कुर्बान किए गए जानवर का मांस तीन हिस्सों में बांटा जाता है: एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है, दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है, और तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है। यह परंपरा साझा करने की भावना और समाज में एकता को बढ़ावा देती है।
ईद-उल-अजहा के दिन विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं। स्वादिष्ट बिरयानी, कबाब, कोरमा और मिठाइयाँ जैसे सेवइयाँ और शीर कुरमा ईद के उत्सव का हिस्सा होते हैं।
बकरीद के मौके पर बच्चों को 'ईदी' दी जाती है। ईदी में बुजुर्ग बच्चों को पैसे या मिठाइयों के रूप में उपहार देते हैं। यह परंपरा बच्चों को खुशियां बांटने और उनका सम्मान करने का प्रतीक है। ईदी देना और लेना भी इस त्योहार के आनंद में इजाफा करता है।
ईद-उल-अजहा का त्योहार न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह समाज में एकता, साझा करने और देखभाल करने की भावना को भी बढ़ावा देता है। कुर्बानी का मांस गरीबों और जरूरतमंदों के बीच बांटने की प्रथा समाज को मजबूत और सहायक बनाती है।
ईद-उल-अजहा के मौके पर, यह जरूरी है कि हम अपने चारों ओर के लोगों के साथ अपनी खुशियों को बांटें और उनकी जरूरतों को समझें। इस त्योहार के माध्यम से हम यह सीख सकते हैं कि किस तरह से बलिदान, सेवा और भक्ति का महत्व हमारे दैनिक जीवन में है।
ईद-उल-अजहा का त्योहार हमें यह सिखाता है कि भक्ति और समर्पण का महत्व हमारी जीवन यात्रा में कितना महत्वपूर्ण है। यह त्योहार हमारे जीवन में बलिदान, सेवा और साझा करने की भावना को पुनर्जीवित करता है। इससे हम अपने समाज और दुनिया को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।
इस बार 2024 में, आईए मिलकर ईद-उल-अजहा को धूमधाम से मनाएं और अपने चारों ओर की दुनियाको थोड़ा और बेहतर बनाने का प्रयास करें। हम सब मिलकर खुशियों, प्रेम और सद्भावना के संदेश को आगे बढ़ाएं और ईद-उल-अजहा के सच्चे संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें।
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