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नाफ़्टोगाज़ – क्या है, कैसे काम करता है और भारत में इसका महत्व

जब हम नाफ़्टोगाज़, एक हल्का पेट्रोलियम उत्पाद है जो कच्चे तेल से निकाला जाता है और गैस रूप में उपयोग होता है. यह अक्सर नाफ़्था गैस के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए ऊर्जा क्षेत्र में इसका बड़ा स्थान है.

नाफ़्टोगाज़ को ऊर्जा बाजार, देश के व्यापार, कीमतों और आपूर्ति‑डिमांड के उतार‑चढ़ाव को नियंत्रित करने वाला मंच में प्रमुख खिलाड़ी माना जाता है. जब पेट्रोल, डीज़ल या कोयला की कीमतें बढ़ती हैं, तो नाफ़्टोगाज़ अक्सर सस्ती विकल्प बन जाता है, इसलिए इसका मूल्य संकलन अक्सर आयात‑निर्यात नीति और राष्ट्रीय ऊर्जा रणनीति से जुड़ा होता है. यही कारण है कि वित्तीय आंकड़े, जैसे एफवाई 2024‑25 के टैक्स डेडलाइन बदलाव, सीधे नाफ़्टोगाज़ के ट्रेडिंग वॉल्यूम को प्रभावित करते हैं. नाफ़्टोगाज़ की कीमतों में हल्की‑हल्की बदलाव भी निवेशकों को आकर्षित या हटा सकता है.

सरकारी नियमों का नाफ़्टोगाज़ पर गहरा असर होता है. टैक्स नीति, कर कानून, रिवेट, और एक्साइज़ ड्यूटी की संरचना में बदलाव नाफ़्टोगाज़ के अंतिम लागत को तय करता है. उदाहरण के तौर पर, CBDT ने आईटीआर डेडलाइन बढ़ाने की घोषणा की, जिससे आयकर दायित्व वाले कंपनियों की नकदी प्रवाह में सुधार हुआ, और इससे वे नाफ़्टोगाज़ के अनुबंधों को समय पर पूरा कर पाए. इसी तरह, अगर राज्य स्तर पर एक्साइज़ ड्यूटी घटायी जाये तो कच्ची कीमत कम होगी, और उद्योग के लिए उत्पादन बढ़ेगा.

नाफ़्टोगाज़ की सप्लाई श्रृंखला भी एक जटिल नेटवर्क है. आपूर्ति श्रृंखला, उत्पादन, टैंकर शिपिंग, भंडारण और अंतिम उपयोग तक के चरण में कई खिलाड़ी शामिल होते हैं – रिफ़ाइनरी, पाइपलाइन ऑपरेटर, लॉजिस्टिक्स फर्म, और रिटेल डिस्ट्रीब्यूटर. जब मौसम विभाग ने मुंबई में रेड अलर्ट जारी किया, तो शिपिंग टाइमलाइन प्रभावित हुई, जिससे नाफ़्टोगाज़ के ट्रांसपोर्ट में देरी हुई. ऐसा होने पर बाजार में अस्थायी कमी पैदा होती है, और कीमतें त्वरित रूप से बढ़ सकती हैं. इसलिए हर छूट या प्राकृतिक आपदा का असर सीधे इस उत्पाद के व्यापार में महसूस किया जाता है.

पर्यावरणीय दृष्टि से नाफ़्टोगाज़ को अक्सर प्राकृतिक गैस के साथ तुलना की जाती है. प्राकृतिक गैस, एक स्वच्छ दहन वाला ईंधन जिसमें कम कार्बन उत्सर्जन होता है से अलग नाफ़्टोगाज़ का कार्बन फुटप्रिंट थोड़ा अधिक रहता है, लेकिन फिर भी कोयला या डीज़ल से कम हानिकारक माना जाता है. इस कारण कई औद्योगिक इकाइयाँ उन्‍हें अपनाती हैं जहाँ पर्यावरणीय नियमन कड़ा है, लेकिन लागत‑प्रभावशीलता भी जरूरी है. इस तालमेल ने भारत के कई रिफ़ाइनरी को नाफ़्टोगाज़ के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया है.

उद्योग में नाफ़्टोगाज़ का उपयोग व्यापक रूप से फैला है. पेट्रोलियम, कटिंग‑एज इंधन, इरोट्रांसपोर्ट और रासायनिक उत्पादन की नींव के रूप में यह रिफ़ाइनरी आउटपुट का एक महत्वपूर्ण भाग है. इसका उपयोग पावर जेनरेशन, स्टीम बॉयलर, और प्लास्टिक निर्माण में भी किया जाता है. जब भारत में ऊर्जा मांग बढ़ती है, तो पेट्रोलियम सेक्टर नाफ़्टोगाज़ की खपत को बढ़ाता है, जिससे इस उत्पाद का आर्थिक महत्व और अधिक तेज़ी से बढ़ता है.

भविष्य में नाफ़्टोगाज़ का मार्ग कैसे बनेगा? कई विशेषज्ञ कहते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार होने पर भी नाफ़्टोगाज़ को ट्रांज़िशन फ्यूल के रूप में इस्तेमाल किया जाएगा. इसका मतलब है कि जब सौर या पवन ऊर्जा का आउटपुट घटेगा, तो बैक‑अप के तौर पर नाफ़्टोगाज़ तुरंत उपलब्ध रहेगा. साथ ही, नई रिफ़ाइनिंग तकनीक और बायो‑मास मिश्रण से इसका कार्बन उत्सर्जन घटाने की दिशा में प्रयास जारी हैं. इस तरह, नाफ़्टोगाज़ न केवल मौजूदा ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेगा, बल्कि सतत विकास के लक्ष्यों में भी योगदान देगा.

आप नीचे दी गई खबरों में नाफ़्टोगाज़ से जुड़े विभिन्न पहलुओं को देख सकते हैं – टैक्स डेडलाइन, मौसम की चेतावनी, सरकारी नीतियों और बाजार की प्रतिक्रिया. इन लेखों को पढ़ने से आपको समझ आएगा कि कैसे छोटे‑बड़े निर्णय नाफ़्टोगाज़ के मूल्य, उपलब्धता और उपयोग को आकार देते हैं. आगे बढ़ते हुए, आप इन व्यावहारिक अंतर्दृष्टियों को अपने काम या निवेश निर्णयों में लागू कर सकते हैं.

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