जब आप सुनते हैं पंचायत, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय शासन की निचली इकाई, जहाँ आम नागरिक सीधे निर्णय लेते हैं, तो क्या आप सोचते हैं कि यह सिर्फ एक पुरानी प्रणाली है? नहीं। पंचायत आज भी देश की जीवन रेखा है—जहाँ गाँव की सड़कें बनती हैं, स्कूलों में पानी की टंकी लगती है, और बीमारी के खिलाफ टीकाकरण की अभियान चलते हैं। यह कोई बुरा याद नहीं, बल्कि वो जगह है जहाँ आम आदमी की आवाज़ सुनी जाती है।
यह ग्राम पंचायत, भारत के सबसे छोटे शासन इकाई, जो सीधे गाँव के लोगों द्वारा चुनी जाती है ही है जो बजट बनाती है, राज्य सरकार से पैसा माँगती है, और फिर उसका इस्तेमाल गाँव की जरूरतों के हिसाब से करती है। इसके ऊपर है राज्य पंचायती राज, राज्य स्तर की पंचायती निकाय जो ग्राम पंचायतों को निर्देश और वित्तीय समर्थन देती है। ये दोनों मिलकर एक ऐसा ढांचा बनाते हैं जहाँ एक गाँव का अध्यक्ष भी एक विधायक के बराबर शक्ति रखता है—बस इसका दायरा छोटा है। और यही छोटापन इसे बहुत बड़ा बनाता है।
क्या आपने कभी सोचा कि आपके गाँव की सारी बुनियादी व्यवस्था—पानी, बिजली, स्वच्छता, बच्चों की पढ़ाई—किसके हाथ में है? ज्यादातर बार यह स्थानीय लोकतंत्र, जहाँ नागरिक सीधे निर्णय लेते हैं, और शासन की जिम्मेदारी स्थानीय स्तर पर रहती है के हाथ में होती है। यही कारण है कि जब कानपुर के डीएम छठ पूजा के लिए घाटों की सुरक्षा का आदेश देते हैं, तो उसकी जिम्मेदारी भी पंचायतों पर आती है। जब दार्जिलिंग में भूस्खलन होता है, तो पहली मदद वहीं से आती है जहाँ पंचायत अपने लोगों को जानती है।
इस लिस्ट में आपको ऐसे ही कई कहानियाँ मिलेंगी—जहाँ पंचायत ने बदलाव लाया है। किसानों की मदद के लिए गाँव की पंचायत ने कैसे बनाया जल संरक्षण प्रोजेक्ट? कैसे एक ग्राम पंचायत ने अपने बजट से बच्चों के लिए बिना बिजली के भी लाइट लगाई? और कैसे कुछ पंचायतों ने अपने लोगों की आवाज़ को राष्ट्रीय स्तर पर सुनाया? ये सब कहानियाँ आपको दिखाएँगी कि पंचायत सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि भारत की असली शक्ति है।
जितेंद्र कुमार ने खुलासा किया कि उनकी करियर यात्रा का श्रेय मेहनत से ज्यादा किस्मत को देते हैं। पंचायत, भागवत चैप्टर 1: राक्षस और मिर्जापुर फिल्म में उनके अद्वितीय किरदारों की गहराई का पता चलता है।