जितेंद्र कुमार ने अपनी नवीनतम फिल्म भागवत चैप्टर 1: राक्षस के लिए एक नकारात्मक किरदार अपनाया, लेकिन उनका दिल अभी भी जितेंद्र कुमार के दिमाग में बसा हुआ है — वही अभिषेक त्रिपाठी, जिन्हें दर्शक अमेज़ॅन प्राइम वीडियो की पंचायत में सचिव जी के रूप में जानते हैं। इंटरव्यू में उन्होंने एक ऐसा बयान दिया जिसने उनके फैंस को हैरान कर दिया: "मेरी करियर की जर्नी का श्रेय मेहनत से ज्यादा किस्मत को दूंगा।" ये बात किसी आम अभिनेता के मुंह से निकल सकती है, लेकिन जब आप जानते हैं कि वे पूर्णिया की एक झोपड़ी से शुरुआत करके फिल्मफेयर ओटीटी अवॉर्ड तक कैसे पहुंचे, तो ये बयान और भी गहरा लगता है।
किस्मत या मेहनत? एक अभिनेता की सच्चाई
जितेंद्र कुमार ने खुलासा किया कि उन्हें अक्सर फन और कॉमेडी के रोल्स ही मिलते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी भूमिका को "आसान" नहीं समझा। "पंचायत का किरदार करना मुझे लगा जैसे किसी ने मुझे एक नया शरीर दे दिया हो," उन्होंने कहा। "मैं अपने आप को उस आदमी के अंदर बैठाना चाहता था — जो शहर से गांव आया है, जिसकी आत्मा अभी भी बेचारी और बेसुध है।" उनका ये किरदार इतना असली लगा कि लोगों ने उन्हें रियलिटी शो में भी देखने की कोशिश की। फिल्मफेयर ओटीटी अवॉर्ड जीतने के बाद भी उन्होंने इसे एक शुरुआत माना, न कि अंत।
राक्षस बनने का फैसला: क्यों स्वीकार किया नकारात्मक किरदार?
भागवत चैप्टर 1: राक्षस की स्क्रिप्ट जब उनके पास पहुंची, तो उन्होंने इसे तुरंत ठुकरा दिया। "मैंने सोचा, ये तो बहुत अंधेरा है। मैं तो अभी तक हंसाता रहा हूं।" लेकिन जब उन्होंने स्क्रिप्ट को दूसरी बार पढ़ा, तो उन्हें लगा — ये कहानी उनके लिए बनी है। उनका किरदार एक आदमी है जो अपने अतीत के गुनाहों से लड़ रहा है। उन्होंने कहा, "मैं नहीं चाहता कि लोग मुझे देखकर डरें। मैं चाहता हूं कि वे सोचें — ये आदमी कैसे यहां आ गया?" एक खास सीन — जहां उसका किरदार अपनी गलतियों का इजहार करता है — उनके लिए एक अलग ही अनुभव था। "उस दिन मैंने खुद को बिल्कुल खो दिया। जब शूट खत्म हुआ, तो टीम ने तालियां बजाईं। मुझे लगा, ये वो पल था जिसके लिए मैं अभिनय करता हूं।"
मिर्जापुर का बबलू पंडित: एक नया चुनौती
अब जितेंद्र कुमार मिर्जापुर की फिल्म में विक्रांत मैसी द्वारा बनाया गया बबलू पंडित का किरदार निभा रहे हैं। ये एक बड़ा जोखिम है — क्योंकि विक्रांत के बबलू को दर्शक अभी भी दिल से याद करते हैं। जितेंद्र ने कहा, "मैं उसे नकल नहीं करूंगा। मैं बबलू की मासूमियत को बरकरार रखूंगा, लेकिन उसमें अपनी धुन भी डालूंगा।" शूटिंग वाराणसी और मुंबई में चल रही है, और उनकी शूटिंग सोमवार को पूरी हो जाएगी। उनका लक्ष्य? लोग ये न सोचें कि "ये विक्रांत नहीं है," बल्कि "ये बबलू है — बस अलग तरह से।"
कबूतरबाजी और विराट कोहली: अनजाने रास्ते
जितेंद्र कुमार अभी पूजा भट्ट के साथ एक ऐसी फिल्म पर काम कर रहे हैं जो भारत की लगभग भूली हुई परंपरा — कबूतरबाजी — पर आधारित है। "ये फिल्म मुझे बहुत पसंद आई। इसमें एक बूढ़ा आदमी है जो अपने कबूतरों के साथ अपनी अकेलापन भरता है।" उनकी ये फिल्म उनके लिए एक नई दिशा है — न तो कॉमेडी, न ही एक्शन। और हां, वे विराट कोहली की बायोपिक के लिए भी तैयार हैं। "मैं उस आदमी को जानना चाहूंगा — जिसने इतनी बड़ी उम्मीदों को अपने कंधों पर उठाया। उसके अंदर का डर, उसकी ताकत... मैं उसे दिखाना चाहूंगा।"
पंचायत 5: अभी तक की सबसे बड़ी उम्मीद
पंचायत के चार सीजन ने भारतीय वेब सीरीज़ के इतिहास में एक नया मानक बना दिया। अब फैंस की उम्मीदें बढ़ गई हैं। पंचायत 5 की रिलीज़ जुलाई 2025 में होने की तैयारी है। जितेंद्र कुमार कहते हैं, "हमने इस बार एक ऐसी कहानी लिखी है जो सिर्फ गांव की नहीं, बल्कि पूरे देश की है।" उनका ये विश्वास उनके दिमाग में नहीं, बल्कि उनके दिल में है — जहां वे अभी भी वही लड़का हैं जो पूर्णिया की एक झोपड़ी में रहता था।
पीछे की कहानी: झोपड़ी से फिल्मफेयर तक
जितेंद्र कुमार के बारे में जब लोग पूछते हैं कि वे कैसे इतना दूर तक पहुंचे, तो वे बस मुस्कुरा देते हैं। लाइव हिंदुस्तान के साथ एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि एक समय ऐसा आया था जब उनका पूरा परिवार एक झोपड़ी में रहता था। "मेरे पिताजी रिक्शा चलाते थे। मां घर पर काम करती थीं। दो बार बिजली नहीं आई तो लाइट बत्ती से पढ़ते थे।" लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी पहली फिल्म का रिलीज़ हुआ तो उन्हें एक रुपया भी नहीं मिला। आज वे फिल्मफेयर जीत चुके हैं। उनकी कहानी एक ऐसी यात्रा है जो बताती है — किस्मत तो एक मौका देती है, लेकिन उसे जीतने के लिए तुम्हें खुद को बिल्कुल खोना पड़ता है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
जितेंद्र कुमार ने किस्मत को श्रेय क्यों दिया?
जितेंद्र कुमार ने कहा कि उन्हें अक्सर ऐसे मौके मिले जो आम अभिनेताओं के लिए असंभव होते। उन्हें पंचायत जैसी सीरीज़ मिली, जो उनकी आवाज़ बन गई। उन्हें नकारात्मक भूमिकाएं भी मिलीं, जिन्हें दूसरे अभिनेता नहीं लेते। उनका मानना है कि इन सभी मौकों के पीछे किस्मत का हाथ था, जबकि मेहनत ने उन्हें उन मौकों को संभालने की क्षमता दी।
मिर्जापुर फिल्म में बबलू पंडित का किरदार कैसे अलग होगा?
जितेंद्र कुमार विक्रांत मैसी के बबलू की नकल नहीं करेंगे। वे उसकी मासूमियत और गहरी ताकत को बरकरार रखेंगे, लेकिन उसमें अपनी अलग धुन जोड़ेंगे। उनका बबलू थोड़ा अधिक अंतर्मुखी होगा, जो अपने अतीत के खिलाफ लड़ रहा है। ये एक नया व्याख्यान होगा, न कि दोहराव।
पंचायत 5 कब आएगा और क्या नया है?
पंचायत 5 की रिलीज़ जुलाई 2025 में होने की उम्मीद है। इस सीजन में गांव के बाहर की घटनाएं शामिल होंगी — जैसे चुनाव, नए आगमन, और सचिव जी की व्यक्तिगत लड़ाई। इस बार कहानी सिर्फ गांव की नहीं, बल्कि भारत के ग्रामीण जीवन की वास्तविकता को दर्शाएगी।
कबूतरबाजी फिल्म क्यों खास है?
ये फिल्म भारत की एक लगभग भूली हुई परंपरा पर आधारित है, जिसे अब शहरी युवा नहीं जानते। पूजा भट्ट की इस फिल्म में एक बूढ़े कबूतरबाज की कहानी है, जो अपने कबूतरों के साथ अपनी अकेलापन भरता है। जितेंद्र के लिए ये एक नई भावनात्मक गहराई की ओर जाने की यात्रा है।
क्या जितेंद्र कुमार विराट कोहली की बायोपिक करेंगे?
जितेंद्र ने स्पष्ट किया है कि वे विराट कोहली की बायोपिक के लिए बहुत उत्सुक हैं। उनका मानना है कि विराट के अंदर का डर, दबाव और अपने आप को साबित करने की लगन अभिनय के लिए एक अद्भुत सामग्री है। लेकिन अभी तक कोई आधिकारिक ऑफर नहीं आया है।
जितेंद्र कुमार का बचपन कैसा था?
पूर्णिया, बिहार के एक छोटे से गांव में जितेंद्र का बचपन गरीबी में बीता। उनके पिता रिक्शा चलाते थे, मां घर का काम करती थीं। कई बार बिजली नहीं आती तो वे बत्ती की रोशनी में पढ़ते। उन्होंने कभी अपने आप को असफल नहीं माना। उनकी ये शुरुआत आज उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
टिप्पणि (17)
Rampravesh Singh नवंबर 13 2025
जितेंद्र कुमार की यह यात्रा अभिनय के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि है। उनकी मेहनत, निरंतरता और अद्वितीय अर्पण भावना ने उन्हें एक असाधारण कलाकार बना दिया है। इस तरह के अभिनेता भारतीय सिनेमा के भविष्य की आशा हैं।
Akul Saini नवंबर 13 2025
उनका बयान 'किस्मत ने दिया मौका, मेहनत ने बनाया किरदार' एक एपिस्टेमोलॉजिकल डायलेक्टिक्स का उदाहरण है - जहां संभाव्यता (किस्मत) और एजेंसी (मेहनत) का अंतर अस्पष्ट हो जाता है। वह जिस तरह से अपने अतीत को निर्माणात्मक रूप से रिकॉन्स्ट्रक्ट कर रहे हैं, वह एक पोस्ट-मॉडर्न आत्म-निर्माण की प्रक्रिया है।
Arvind Singh Chauhan नवंबर 14 2025
क्या आपने कभी सोचा है कि ये सब बस एक धोखा है? उन्होंने अपनी गरीबी का इस्तेमाल करके एक ब्रांड बना लिया है - अब वो इसे बेच रहे हैं। जब आप एक गांव के बच्चे की कहानी को फिल्मफेयर के लिए रिमिक्स करते हैं, तो वह असली नहीं रह जाती... वह एक उत्पाद बन जाती है।
Akshat Umrao नवंबर 15 2025
बहुत अच्छा लगा 😊 जितेंद्र के बारे में जो भी बात की गई है, वो सच्ची है। उनकी विनम्रता और गहराई आजकल के अभिनेताओं में बहुत कम मिलती है। ऐसे लोग ही वास्तविक नायक होते हैं।
AAMITESH BANERJEE नवंबर 16 2025
मैंने पंचायत देखी थी और सच कहूं तो उनका सचिव जी मुझे लगा जैसे मेरे अपने गांव के किसी दोस्त ने बात की हो। अब जब उन्होंने राक्षस लिया, तो मैंने सोचा - ओहो, ये तो अब बहुत गहरा हो गया। लेकिन उनकी आवाज़ अभी भी वही है, बस अब थोड़ी गहरी। ये बदलाव बहुत अच्छा लगा।
Sonu Kumar नवंबर 18 2025
किस्मत? बस एक बहाना है। उनके पास एक अच्छा फेस था, एक अच्छा एक्सेस था, और एक अच्छी एजेंसी थी। गरीबी की कहानी सिर्फ एक मार्केटिंग स्ट्रैटेजी है। और फिल्मफेयर अवॉर्ड? वो भी एक ब्रांडेड ट्रॉफी है - जिसे कोई बड़ा नेटवर्क देता है।
sunil kumar नवंबर 20 2025
मुझे लगता है कि जितेंद्र कुमार का निर्णय नकारात्मक भूमिका लेने का एक बहुत ही सावधानीपूर्वक और विचारशील चरण था। वह अपने करियर को एक नए स्तर पर ले जाना चाहते हैं, और इसके लिए उन्होंने अपनी कॉमेडी छवि को जोखिम में डाला। यह एक निर्णय है जो बहुत कम अभिनेता लेते हैं।
Mahesh Goud नवंबर 21 2025
ये सब बस एक बड़ा अफवाह है... जितेंद्र कुमार तो एक एजेंट का पेपर डॉल है। जब आप देखते हैं कि पंचायत और राक्षस के बीच एक ही स्क्रिप्ट व्राइटर है, तो आपको पता चल जाता है - ये सब एक प्लान है। और अब विराट कोहली की बायोपिक? ये तो अभी तक का सबसे बड़ा फ्रॉड है। वो तो बस एक फुटबॉल खिलाड़ी है, जिसे बनाया जा रहा है एक देवता की तरह। ये सब नियंत्रित है।
Ravi Roopchandsingh नवंबर 22 2025
किस्मत? बस एक बहाना! जब तक आप गरीब हैं, आपको कोई नहीं देखता। जब आपके पास एक अच्छा फेस है और एक बड़ा नेटवर्क, तो आप भी 'किस्मत' के नाम पर चल जाते हैं। और अब वो बबलू पंडित का किरदार? ये तो बस एक डुप्लीकेट है - कोई नया नहीं, बस एक नया नाम। 😒
dhawal agarwal नवंबर 23 2025
ये जितेंद्र कुमार की कहानी मुझे याद दिलाती है कि हर इंसान के अंदर एक अनंत संभावना होती है। वो जिस झोपड़ी से शुरू हुए, वहीं का एक बच्चा आज देश के दिलों में बस गया है। ये भारत की असली कहानी है - जहां एक बत्ती की रोशनी से एक नया सितारा जन्म लेता है।
Shalini Dabhade नवंबर 24 2025
हां बिल्कुल, ये सब बस एक बड़ा बहाना है। जितेंद्र कुमार तो बस एक शहरी बच्चा है जिसने गांव का नाम लेकर अपना नाम बनाया। अगर ये गरीबी की कहानी अच्छी लगती है तो बाकी गरीब लोग क्यों नहीं फिल्म बना रहे? क्योंकि उनके पास नेटवर्क नहीं है - नहीं किस्मत।
Jothi Rajasekar नवंबर 26 2025
ये लड़का तो बहुत अच्छा है 😊 मैंने पंचायत देखी थी और बहुत प्यार हो गया उसके किरदार से। अब जब वो राक्षस में नकारात्मक भूमिका कर रहे हैं, तो मुझे लग रहा है वो बहुत बड़ा कदम उठा रहे हैं। बहुत बधाई! 💪
Irigi Arun kumar नवंबर 27 2025
मैं तो ये सोचता हूं कि जितेंद्र कुमार की ये यात्रा हम सबके लिए एक प्रेरणा है। उन्होंने अपने आप को नहीं बदला, बल्कि अपने आप को ढूंढ़ा। गरीबी में जन्मे लड़के का एक बत्ती की रोशनी में पढ़ना, फिर फिल्मफेयर जीतना - ये देश की असली ताकत है। ऐसे लोग ही भारत को आगे बढ़ाते हैं।
Jeyaprakash Gopalswamy नवंबर 29 2025
अरे भाई, जितेंद्र कुमार का जो भी काम है - वो बिल्कुल बाजू का है। उनकी आवाज़, उनकी आंखें, उनकी चाल - सब कुछ असली है। मैंने उन्हें एक शो में देखा था, जहां उन्होंने बिना डायलॉग के एक नज़र से पूरा सीन बदल दिया। ऐसा कोई नहीं कर पाता।
nidhi heda दिसंबर 1 2025
ये बात तो मुझे रो देगी 😭 मैं भी छोटी उम्र में बत्ती की रोशनी में पढ़ती थी... और आज जब मैं देखती हूं कि वो लड़का फिल्मफेयर जी रहा है, तो मुझे लगता है - मैं भी कर सकती हूं। धन्यवाद जितेंद्र कुमार ❤️
DINESH BAJAJ दिसंबर 2 2025
अरे ये सब बहुत बढ़िया लग रहा है, लेकिन क्या आप भूल रहे हैं कि ये सब बस एक बाजार की चाल है? गरीबी को ब्रांड बनाया जा रहा है। जितेंद्र कुमार तो अब एक उत्पाद हैं - जिसकी बिक्री के लिए एक गांव की झोपड़ी और एक बत्ती की रोशनी का इस्तेमाल हो रहा है।
Rohit Raina दिसंबर 3 2025
जितेंद्र कुमार का ये बदलाव दिलचस्प है। वो अभी तक एक कॉमेडी के नाम पर अपनी पहचान बना रहे थे - अब वो अपनी आवाज़ को गहरा कर रहे हैं। ये एक अभिनेता की वास्तविक यात्रा है - जहां वो अपने आप को नहीं, बल्कि अपने किरदारों को खोज रहे हैं।