तम्बारम-सेंगोट्टई एक तमिलनाडु का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक निशान, जो पुराने तमिल सभ्यता के अवशेषों और आधुनिक शहरी जीवन के बीच एक अनोखा संगम है। यह क्षेत्र सिर्फ एक जगह नहीं, बल्कि एक जीवित कहानी है—जहाँ शताब्दियों पुराने मंदिरों की छतों के नीचे आज के छात्र और किसान एक साथ रहते हैं। यहाँ का प्रत्येक कोना एक नया अध्याय खोलता है: कुछ जगहें तमिल साहित्य के जन्मस्थान हैं, कुछ जगहें आज के शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र बन चुकी हैं।
सेंगोट्टई, जो तम्बारम का एक भाग है, एक ऐसा स्थान, जहाँ भूमि की उपज और लोगों की मेहनत एक साथ बहती है। यहाँ के किसान अक्सर अपनी फसलों को दूर के बाजारों में भेजते हैं, और उनकी आय का बड़ा हिस्सा शहरी बाजारों की मांग पर निर्भर करता है। वहीं, तम्बारम शहर की सड़कें आज भी वही गति बरकरार रखती हैं जो दशकों पहले थी—लेकिन अब उन पर बसों की जगह ऑटो और इलेक्ट्रिक स्कूटर चल रहे हैं। यहाँ के लोग अपनी परंपराओं को नहीं छोड़ रहे, बल्कि उन्हें नए तरीकों से जी रहे हैं।
इस क्षेत्र के बारे में आपको जो खबरें मिलती हैं, वो सिर्फ राजनीति या बुनियादी ढांचे की नहीं होतीं। यहाँ की खबरें लोगों के जीवन की होती हैं—जैसे कि एक गाँव में बच्चों के लिए नया स्कूल खुलना, या एक पुराने मंदिर के चारों ओर बने बाजार का नया रूप। कुछ खबरें तो ऐसी हैं जो दक्षिण भारत के बड़े बदलाव का हिस्सा हैं। जैसे जब नए राजमार्ग बनते हैं, तो तम्बारम-सेंगोट्टई के लोग अपनी रोज़मर्रा की जिंदगी को फिर से लिखते हैं।
यहाँ के लोग अपनी भाषा, अपने त्योहार और अपनी रसोई को बरकरार रखते हैं, लेकिन उनके बच्चे अब डिजिटल टूल्स के साथ पढ़ते हैं। यह नया संगम ही इस क्षेत्र की असली पहचान है। आप यहाँ उन लोगों की कहानियाँ पाएँगे जो अपने घर के बाहर नहीं जाते, लेकिन दुनिया को अपने तरीके से बदल रहे हैं।
नीचे आपको तम्बारम-सेंगोट्टई से जुड़ी वास्तविक घटनाएँ, लोगों की आवाज़ें और उनके संघर्ष और सफलताएँ मिलेंगी। ये खबरें सिर्फ एक स्थान की नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक जीवन की हैं—जो अभी भी जी रहा है।
दक्षिण रेलवे ने दिवाली के लिए तम्बारम-सेंगोट्टई विशेष ट्रेन चलाई, जो मेलमरुवथूर स्टेशन पर रुकती है। यह भक्तों की यात्रा को सुगम बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।