जब कोई त्योहार आता है, जैसे धनतेरस, भारत में सोना-चांदी की खरीदारी का प्रमुख दिन या छठ पूजा, गंगा और यमुना के घाटों पर चाँद देखने का पारंपरिक अवसर, तो भारतीय रेलवे अपनी सामान्य शेड्यूल बदल देता है। ये विशेष ट्रेन, त्योहारों, धार्मिक यात्राओं या बड़ी घटनाओं के लिए अतिरिक्त रूप से चलाई जाने वाली रेल सेवाएँ आम यात्रियों के लिए बहुत ज़रूरी हो जाती हैं। ये ट्रेनें सिर्फ़ एक बार नहीं, बल्कि हर साल एक निश्चित समय पर चलती हैं — जैसे नागालैंड की लॉटरी ड्रॉ के दिन, जब कोहिमा से लाखों लोग अपने टिकट जीतने के लिए शहरों की ओर बढ़ते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि लॉटरी ट्रेन, जिसमें जीतने वाले यात्री अपने पुरस्कार लेने या टिकट खरीदने के लिए यात्रा करते हैं कैसे बनती है? या धनतेरस ट्रेन, जिसमें लाखों लोग सोने के गहने खरीदने के लिए बड़े शहरों की ओर जाते हैं? ये सिर्फ़ ट्रेनें नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक गतिविधियों का एक जीवंत दर्पण हैं। जब दार्जिलिंग में भूस्खलन होता है, तो रेलवे अपनी विशेष ट्रेनों को बचाव और राहत सामग्री पहुँचाने के लिए तैयार करता है। जब नागालैंड की लॉटरी का नतीजा आता है, तो ट्रेनों में लोग उस एक टिकट की उम्मीद में भीड़ लगा देते हैं। ये ट्रेनें किसी अनुशासन की नहीं, बल्कि लोगों की उम्मीदों की गति हैं।
आज के समय में ये विशेष ट्रेनें सिर्फ़ यात्रा का साधन नहीं, बल्कि एक घटना बन गई हैं। क्या आप जानते हैं कि एक बार भारतीय रेलवे ने एक ट्रेन को तेजस विमान के दुर्घटना के बाद श्रद्धांजलि के लिए विशेष रूप से चलाया? या जब गुरु नानक जयंती पर पंजाब से दिल्ली तक लाखों भक्तों को ले जाने के लिए अतिरिक्त ट्रेनें जोड़ी गईं? ये सब कुछ आपके नीचे दिए गए लेखों में मिलेगा — जहाँ हमने उन विशेष ट्रेनों की कहानियाँ इकट्ठा की हैं, जो भारत के राजनीति, धर्म, खेल और अर्थव्यवस्था को जोड़ती हैं। यहाँ आपको वो खबरें मिलेंगी जिन्हें आपको अभी तक किसी ने नहीं बताया।
दक्षिण रेलवे ने दिवाली के लिए तम्बारम-सेंगोट्टई विशेष ट्रेन चलाई, जो मेलमरुवथूर स्टेशन पर रुकती है। यह भक्तों की यात्रा को सुगम बनाने का एक महत्वपूर्ण कदम है।