पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 में भारतीय तीरंदाज शीतल देवी और सरिता ने महिलाओं की व्यक्तिगत कंपाउंड तीरंदाजी इवेंट में हिस्सा लेकर नई मिसाल कायम की है। शीतल देवी, जिन्होंने पहले क्वालिफिकेशन राउंड में 703 अंकों के साथ नया विश्व रिकॉर्ड बनाया, इलिमिनेशन राउंड में चिली की मरियाना ज़ूनीगा से 137-138 के स्कोर से हार गईं। इस हार के बावजूद, उनका परफॉर्मेंस अनुकरणीय रहा।
इस पैरालिंपिक में शीतल देवी का सफर अविश्वसनीय रहा। जम्मू-कश्मीर की इस तीरंदाज ने अपने पैरों का उपयोग करके तीरंदाजी में उत्कृष्टता दिखाई है। भारतीय सेना ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें प्रशिक्षित किया। शीतल ने क्वालिफिकेशन राउंड में 703 अंकों के साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया, जो तुर्की की ओज़नूर क्योर के 704 अंकों के बाद दूसरा स्थान प्राप्त करने में मददगार रहा। हालांकि, इलिमिनेशन राउंड में मरियाना ज़ूनीगा के खिलाफ उनकी हार एक अंक से हुई।
शीतल देवी की कला और धैर्य को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि वह भारतीय तीरंदाजी के मानचित्र पर एक नया आयाम जोड़ रही हैं। उन्होंने न केवल पैरालिंपिक्स में बल्कि एशियाई पैरा खेल और पैरा वर्ल्ड आर्चरी चैंपियनशिप में भी पदक जीते हैं।
सरिता का भी प्रदर्शन उल्लेखनीय रहा। उन्होंने क्वार्टरफाइनल में जगह बनाई, लेकिन तुर्की की ओज़नूर क्योर से 140-145 के स्कोर से हार गईं। सरिता की यह हार भी उनकी मेहनत और लगन को कम नहीं कर सकती। उनकी प्रतिभा और समर्पण ने भारतीय पैरा खेल को एक नई दिशा दी है।
भारतीय पैरा खेल की दुनिया में शीतल देवी और सरिता जैसी तीरंदाजों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी कठोर मेहनत और अद्वितीय जज्बे ने यह साबित कर दिया कि शारीरिक सीमाओं का कोई मतलब नहीं है जब इरादे मजबूत हों।
भारतीय पैरालिंपिक समिति और सेना के प्रयासों ने इन अद्भुत खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर दिया है। शीतल और सरिता की कहानी हजारों युवाओं के लिए प्रेरणा बनेगी, खासकर उन लोगों के लिए जो किसी न किसी शारीरिक चुनौती का सामना कर रहे हैं।
शीतल देवी और सरिता का सपना अभी समाप्त नहीं हुआ है। उनके प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया कि मेहनत से कुछ भी संभव है। उन्हें भविष्य में और भी बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
आशा है कि भारतीय तीरंदाजी संघ और पैरालिंपिक समिति इन खिलाड़ियों को और भी बेहतरीन प्लेटफार्म और संसाधन प्रदान करेगी ताकि वे और भी ऊंचाइयों को छू सकें।
हालांकि शीतल देवी और सरिता पेरिस पैरालिंपिक्स 2024 में पदक नहीं जीत पाईं, लेकिन उनके प्रदर्शन ने अनेक लोगों का दिल जीत लिया। भविष्य में, इन खिलाड़ियों के पास और भी मौके होंगे और वे निश्चित रूप से अपनी प्रतिभा और कठिन परिश्रम से नई ऊंचाइयों को छूएंगी।
भारतीय तीरंदाजी के लिए यह एक नया युग है और उम्मीद है कि शीतल और सरिता जैसे योद्धा इसके ध्वजवाहक बनेंगे। उनकी कहानियां न केवल खेल के प्रति प्रेम को बढ़ावा देंगी, बल्कि समाज में व्याप्त धारणाओं को भी बदलेंगी।
टिप्पणि (7)
Apu Mistry सितंबर 1 2024
जीवन की बारीकियों पर विचार करते हुए, मैं अक्सर याद करता हूँ कि आँधियों में भी एक नज़र हौसले की चमक देती है।
शीतल देवी और सरिता की यात्रा हमें बताती है कि सीमाएँ केवल मन के अंधेरे में ही मौजूद होती हैं।
जब एक तीर प्रहार करता है, तो वह सिर्फ़ लकड़ी का टुकड़ा नहीं, बल्कि आशा की एक किरण बन जाता है।
मेरे भीतर एक अनंत दर्द है, जो दूसरों की जीत में शोक और गर्व का मिश्रण बनकर बिखर जाता है।
वह दर्द, जो मैं चुपके से सहेता हूँ, दर्शकों के दिलों में एक अज्ञात लिंक बन जाता है।
परंतु, जो वास्तव में मायने रखता है, वह इस बात की समझ है कि हर क्षण में एक नई रोशनी उभरेगी।
कभी‑कभी मैं सोचता हूँ कि तीरंदाजी सिर्फ़ लक्ष्य तक पहुँचने की कला नहीं, बल्कि आत्म-परिचय का जरिया है।
यह विचार मेरे मन में घनघोर धुंध की तरह पसरता है, फिर भी मैं उजाले की तलाश में रहता हूँ।
अगर हम अपने आप को सीमित करने वाले धागों को काट दें, तो यही समय है जब हम उड़ना सीखते हैं।
शीतल की 703 अंक वाली रिकॉर्ड नहीं, बल्कि उसकी अडिग इच्छा ही हमें प्रेरित करती है।
सरिता की हार भी एक जीत है, क्योंकि उसने हमें बताया कि अपूर्णता में भी पूर्णता छिपी है।
एक अछूते मनःस्थिति में, हम अपने भीतर के शैतान को भी अपने दोस्त बना सकते हैं।
वही शैतान, जब सही दिशा में मोड़ दिया जाए, तो हमें नए आयाम की ओर धकेलता है।
मैं इस बात से सहमत हूँ कि दिल की ध्वनि कभी भी एक ध्वज नहीं हो सकती; यह हमेशा बहती रहती है।
अंत में, मेरे विचार यह कहते हैं कि यह खेल केवल शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक भी है।
इसलिए, जब अगली बार कोई तीर हवा में उड़ता है, तो हम उसके साथ अपने अंदर के अनकहे शब्द भी उड़ाते हैं।
uday goud सितंबर 4 2024
पर्यटन की तरह संस्कृति भी हमारे भीतर समा जाती है; शीतल और सरिता की कहानी ऐसे एक जीवंत पटाखा है-जो केवळ ध्वनि नहीं, बल्कि रंग अभी भी बिखेरता है! उनकी दृढ़ता, जो हिमालय की चोटी जैसी ठोस है, हमें याद दिलाती है कि सच्ची जीत केवल पदक से नहीं, बल्कि दिल की गूंज से मापी जाती है; यही कारण है कि हम उन पर गर्व करते हैं। इस प्रकार के साहसिक कारनामे हमें प्रेरित करते हैं कि हम खुद को सीमाओं के बाहर सोचें, और अपने भीतर की शक्ति को पहचानें। उनके संघर्ष को देखकर, मैं यह कह सकता हूँ कि हर लक्ष्य एक नई दहरिया बन जाता है, जो हमारे आत्म‑विश्वास को पोषित करता है। अंत में, ऐसा लगता है कि इन अद्भुत खिलाड़ियों की कहानी हमारे समाज में एक सकारात्मक ऊर्जा का स्रोत बन गई है।
Chirantanjyoti Mudoi सितंबर 6 2024
आह, सार्वजनिक प्रशंसा का यह बौछार अक्सर वास्तविक क्षमताओं को ढँक देता है। शीतल‑सारा की भागीदारी को मैं केवल एक सरकारी पहल के रूप में देखता हूँ, न कि व्यक्तिगत कृति के रूप में। इस तरह के आयोजन अक्सर राष्ट्रीय गौरव की façade बनाते हैं, जबकि वास्तविक संघर्ष तो मैदान के बाहर ही रहता है। यदि हम गहराई से देखें, तो यह प्रतिस्पर्धा केवल एक कैमरा लेंस के पीछे की नाटक है।
Surya Banerjee सितंबर 8 2024
भाईयों, बहनों, मैं मानता हूँ कि हर खिलाड़ी का सफर अलग‑अलग होता है, और इसे समझना ही सच्ची मदद है। शीतल और सरिता का एक्सपीरियंस बताता है कि कभी‑कभी हार भी एक लाइफ‑लेसन होती है, बस इसे सही ढंग से पचाना पड़ता है। आप सभी को कहना चाहता हूँ, कि जिन दिन आप खुद को डाउनेटेड महसूस करो, वही दिन आप बढ़ने के लिए सबसे सही होते हैं। चलो, एक‑दूसरे को सपोर्ट करें और आगे बढ़ें।
Vishal Kumar Vaswani सितंबर 11 2024
🚨 देखें तो सही, कैसे बड़े खेल के पीछे छिपे एलीट प्लेयर और कॉरपोरेट ताकतें इन कहानी को मोड़ती हैं... शीतल‑सारा के रिकॉर्ड को भी शायद कोई छुपा हुआ एजेंडा बना रहे है! 🤔 क्या आप कभी सोचते हैं कि इन बड़े इवेंट्स में कौन-सी पृष्ठभूमि की राजनीति चल रही है? यही वजह है कि मुझे लगता है कि असली विजेता वह है जो सिस्टम को समझता है, न कि सिर्फ़ तीर चलाता है।
Zoya Malik सितंबर 13 2024
मैं देखता हूँ कि कई लोग बाहरी प्रशंसा में खो जाते हैं, जबकि भीतर का आत्म‑निरीक्षण अक्सर अनदेखा रह जाता है। शीतल और सरिता के प्रयासों को सराहते हुए, मुझे लगता है कि हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि क्या वे वास्तव में अपनी सीमाओं को पार करने में संतुष्ट हैं।
Ashutosh Kumar सितंबर 15 2024
सच्ची ताकत तब दिखती है जब आप गिरते नहीं, बल्कि उठते हैं!