जब महारिशि वैल्मीकी, जिन्हें आदि‑कवि कहा जाता है, का जन्म दिवस वैल्मीकी जयंती 2024 के रूप में मनाया गया, तो पूरी उपजिला धड़क उठी। यह पर्व भारत के कई शहरों में, विशेषकर थिरुवनिमीुर, चेन्नई में आयोजित भव्य शौभा यात्राओं के साथ गतिमान हुआ। 17 अक्टूबर 2024 को पूर्णिमा (पुर्णिमा) की पावन बेला में, सूर्यास्त से पहले से लेकर शाम 4:55 तक, लाखों भक्तों ने वैल्मीकी के पदचिन्हों पर चलने का संकल्प किया।
वैल्मीकी जयंती, जिसे प्रगट दिवस भी कहते हैं, हिन्दू कैलेंडर के अष्टमांश के पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस परम्परा का उल्लेख ड्रिक पंचांग के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। वैल्मीकी को बौद्धिक इतिहास में पहली बार 500 ईसा‑पूर्व में रहने वाला माना गया, जब संस्कृत काव्य के लिए उसने ‘श्लोक‑मेट्र’ का निर्माण किया। उसी काल में रामायण के 24,000 श्लोकों के साथ वह भारतीय मौखिक परम्परा का राजा बन गया।
इस साल की जयंती की शुभ मुहूर्तें ड्रिक पंचांग ने ठीक‑ठीक निर्धारित कीं: पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को शाम 8:40 वाजे शुरू हुई और 17 अक्टूबर को दोपहर 4:55 तक जारी रही। इससे जुड़े कई स्थानीय कार्यक्रम मुख्यतः दो भागों में बंटे—प्रातःकालीन पूजा और शाम की शोभा यात्रा।
छत्रपति राव जी, चेन्नई के इतिहासशास्त्र विशेषज्ञ, ने कहा, “वैल्मीकी जयंती सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं; यह सामाजिक समानता के संदेश को फिर से उजागर करता है।”
सभी भारत‑व्यापी जयंती समारोहों में सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर थिरुवनिमीुर वैल्मीकी मंदिर है, जिसकी आयु 1,300 साल बताई जाती है। यहाँ पर वैल्मीकी ने रामायण रचने के बाद शरण ली थी, ऐसा कहा जाता है। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष वैल्मीकी जयंती के अवसर पर, दोहों वाली कविताओं की पाठ‑सत्र आयोजित की जाती है, जहाँ शिष्यों को कविता‑अभिनय के माध्यम से नैतिक मूल्यों की सीख दी जाती है।
इसी तरह नेपाल के काठमांडू में भी वैल्मीकी जयंती का जश्न मनाया जाता है, जहाँ स्थानीय बाल्मीकी समुदाय ने “आदि‑कवि के दर्शन” नामक गाना तैयार किया। कुल मिलाकर भारत और नेपाल में 150 से अधिक मंदिरों में विशेष पूजा, ॐकार वंदन और रामायण पाठ हुए।
वैल्मीकी न केवल रामायण के निर्माता हैं, बल्कि वह सामाजिक न्याय के प्रथम प्रवर्तक भी माने जाते हैं। उसकी कहानी में सीता के निर्वासन के बाद वैल्मीकी द्वारा उन्हें आश्रय देना, एवं उनके दो पुत्र लव‑कुश को शिक्षा देना, जाति‑भेद को तोड़ने का प्रतीक है। आज के समय में बाल्मीकी समूह इसे समावेशी समाज के रूप में व्याख्या करता है।
इस वर्ष, दिल्ली के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ. अनुपम शर्मा, ने कहा: “वैल्मीकी जयंती हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और नैतिकता को लेकर कोई वर्गभेद नहीं होना चाहिए। यह मूल्य भारत की वर्तमान सामाजिक सुधार आंदोलन में फिर से उजागर हो रहे हैं।”
इसी संदर्भ में, कई विद्यालयों ने 17 अक्टूबर को “रामायण पढ़ने का दिन” घोषित किया, जहाँ छात्रों ने खोज‑आधारित विधि से महाकाव्य के प्रमुख प्रसंगों का मंचन किया।
दर्शकों का अनुमान है कि 2025 में वैल्मीकी जयंती की तिथियों में कुछ बदलाव नहीं आएगा, क्योंकि पंचांग ने पहले ही अवधि निर्धारित कर दी है। सरकार ने इस वर्ष ‘सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण’ के तहत वैल्मीकी मंदिरों के नवीनीकरण हेतु 2.5 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया। यह राशि मुख्यतः मंदिर की संरचना, प्रकाश व्यवस्था और ध्वनि‑प्रसारण प्रणाली को उन्नत करने में निवेश की जाएगी।
अंत में, वैल्मीकी जयंती केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के मूलभूत मूल्यों—समत्व, सच्चाई, और करुणा—का पुनर्स्मरण है। इस उत्सव के माध्यम से लाखों लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत में निहित शिक्षाएँ आधुनिक समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।
वैल्मीकी जयंती हर साल हिन्दू कैलेंडर के आश्विन महीने की पूर्णिमा पर पड़ती है। 2024 में यह 17 अक्टूबर को भारत के विभिन्न स्थल, विशेषकर चेन्नई के थिरुवनिमीुर वैल्मीकी मंदिर में धूमधाम से मनाई गई। नेपाल में भी प्रमुख बधियों द्वारा यह उत्सव आयोजित किया जाता है।
मुख्य रूप से सुबह की पूजा, रामायण पाठ, और शाम को शौभा यात्रा होती है। परेड में वैल्मीकी की प्रतिमाएँ, पीत वस्त्र धारी संत, और शिल्पकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाता है। कई मंदिरों में ‘आदि‑कवि के दर्शन’ गीत भी गाए जाते हैं।
वैल्मीकी न केवल रामायण के रचनाकार हैं, बल्कि सामाजिक समानता के अग्रदूत भी माने जाते हैं। उनकी कथा में सीता को आश्रय देना और लव‑कुश को शिक्षा देना जाति‑भेद को तोड़ने का प्रतीक है। आज बाल्मीकी समुदाय इस संदेश को सामाजिक सुधार और समावेशी शिक्षा के रूप में आगे बढ़ा रहा है।
हां, 2024 में दिल्ली के कई स्कूलों ने ‘रामायण पढ़ने का दिन’ आयोजित किया, जहाँ छात्रों ने मंचीय प्रस्तुति के जरिए महाकाव्य के प्रमुख प्रसंगों को जीवंत किया। साथ ही, सरकार ने वैल्मीकी मंदिरों के नवीनीकरण के लिये 2.5 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया।
पंचांग के अनुसार तिथियों में परिवर्तन नहीं होने की उम्मीद है। हालांकि, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से वर्चुअल पूजा और ऑनलाइन रामायण पाठ जैसी नई तकनीकी पहलें जल्द ही मुख्यधारा बन सकती हैं, जिससे दूरस्थ समुदाय भी इस पावन अवसर में भाग ले सकेंगे।
टिप्पणि (1)
Surya Banerjee अक्तूबर 7 2025
वैल्मीकी ज्यांती के बारे में पढ़कर बहोत अच्छा लगा, ऐसे आयोजन हमारे समुहिक बंधनों को और मजबूत बनाते हैं।