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वैल्मीकी जयंती 2024: 17 अक्टूबर को रामायण के आदिकवि का जन्म उत्सव
अक्तू॰ 7, 2025
के द्वारा प्रकाशित किया गया rabindra bhattarai

जब महारिशि वैल्मीकी, जिन्हें आदि‑कवि कहा जाता है, का जन्म दिवस वैल्मीकी जयंती 2024 के रूप में मनाया गया, तो पूरी उपजिला धड़क उठी। यह पर्व भारत के कई शहरों में, विशेषकर थिरुवनिमीुर, चेन्नई में आयोजित भव्य शौभा यात्राओं के साथ गतिमान हुआ। 17 अक्टूबर 2024 को पूर्णिमा (पुर्णिमा) की पावन बेला में, सूर्यास्त से पहले से लेकर शाम 4:55 तक, लाखों भक्तों ने वैल्मीकी के पदचिन्हों पर चलने का संकल्प किया।

वैल्मीकी जयंती का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

वैल्मीकी जयंती, जिसे प्रगट दिवस भी कहते हैं, हिन्दू कैलेंडर के अष्टमांश के पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस परम्परा का उल्लेख ड्रिक पंचांग के प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। वैल्मीकी को बौद्धिक इतिहास में पहली बार 500 ईसा‑पूर्व में रहने वाला माना गया, जब संस्कृत काव्य के लिए उसने ‘श्लोक‑मेट्र’ का निर्माण किया। उसी काल में रामायण के 24,000 श्लोकों के साथ वह भारतीय मौखिक परम्परा का राजा बन गया।

2024 के उत्सव की प्रमुख झलकियाँ

इस साल की जयंती की शुभ मुहूर्तें ड्रिक पंचांग ने ठीक‑ठीक निर्धारित कीं: पूर्णिमा तिथि 16 अक्टूबर को शाम 8:40 वाजे शुरू हुई और 17 अक्टूबर को दोपहर 4:55 तक जारी रही। इससे जुड़े कई स्थानीय कार्यक्रम मुख्यतः दो भागों में बंटे—प्रातःकालीन पूजा और शाम की शोभा यात्रा

  • सुबह 6:00 वाजे चेन्नई के वैल्मीकी मंदिर में बाल्मीकी धार्मिक समूह के प्रमुख ने विशेष मंत्रोच्चार किया।
  • दोपहर 12:30 वाजे शहर के विभिन्न अद्यात्मिक केन्द्रों में रामायण के प्रमुख अंशों का गायन हुआ।
  • शाम 5:00 वाजे से शुरू होकर दो घंटे तक चलने वाली शोभा यात्रा में वैल्मीकी की प्रतिमाएँ, पीत वस्त्र धारी संत, और शिल्पकारों की कारीगरी को बिखेरते हुए शहर के मुख्य मार्गों पर परेड हुई।

छत्रपति राव जी, चेन्नई के इतिहासशास्त्र विशेषज्ञ, ने कहा, “वैल्मीकी जयंती सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं; यह सामाजिक समानता के संदेश को फिर से उजागर करता है।”

प्रमुख स्थल और परंपराएँ

सभी भारत‑व्यापी जयंती समारोहों में सबसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर थिरुवनिमीुर वैल्मीकी मंदिर है, जिसकी आयु 1,300 साल बताई जाती है। यहाँ पर वैल्मीकी ने रामायण रचने के बाद शरण ली थी, ऐसा कहा जाता है। इस मंदिर में प्रत्येक वर्ष वैल्मीकी जयंती के अवसर पर, दोहों वाली कविताओं की पाठ‑सत्र आयोजित की जाती है, जहाँ शिष्यों को कविता‑अभिनय के माध्यम से नैतिक मूल्यों की सीख दी जाती है।

इसी तरह नेपाल के काठमांडू में भी वैल्मीकी जयंती का जश्न मनाया जाता है, जहाँ स्थानीय बाल्मीकी समुदाय ने “आदि‑कवि के दर्शन” नामक गाना तैयार किया। कुल मिलाकर भारत और नेपाल में 150 से अधिक मंदिरों में विशेष पूजा, ॐकार वंदन और रामायण पाठ हुए।

सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व

सामाजिक एवं सांस्कृतिक महत्व

वैल्मीकी न केवल रामायण के निर्माता हैं, बल्कि वह सामाजिक न्याय के प्रथम प्रवर्तक भी माने जाते हैं। उसकी कहानी में सीता के निर्वासन के बाद वैल्मीकी द्वारा उन्हें आश्रय देना, एवं उनके दो पुत्र लव‑कुश को शिक्षा देना, जाति‑भेद को तोड़ने का प्रतीक है। आज के समय में बाल्मीकी समूह इसे समावेशी समाज के रूप में व्याख्या करता है।

इस वर्ष, दिल्ली के एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता, डॉ. अनुपम शर्मा, ने कहा: “वैल्मीकी जयंती हमें यह सिखाती है कि शिक्षा और नैतिकता को लेकर कोई वर्गभेद नहीं होना चाहिए। यह मूल्य भारत की वर्तमान सामाजिक सुधार आंदोलन में फिर से उजागर हो रहे हैं।”

इसी संदर्भ में, कई विद्यालयों ने 17 अक्टूबर को “रामायण पढ़ने का दिन” घोषित किया, जहाँ छात्रों ने खोज‑आधारित विधि से महाकाव्य के प्रमुख प्रसंगों का मंचन किया।

आगे की योजना और निष्कर्ष

दर्शकों का अनुमान है कि 2025 में वैल्मीकी जयंती की तिथियों में कुछ बदलाव नहीं आएगा, क्योंकि पंचांग ने पहले ही अवधि निर्धारित कर दी है। सरकार ने इस वर्ष ‘सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण’ के तहत वैल्मीकी मंदिरों के नवीनीकरण हेतु 2.5 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया। यह राशि मुख्यतः मंदिर की संरचना, प्रकाश व्यवस्था और ध्वनि‑प्रसारण प्रणाली को उन्नत करने में निवेश की जाएगी।

अंत में, वैल्मीकी जयंती केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता के मूलभूत मूल्यों—समत्व, सच्चाई, और करुणा—का पुनर्स्मरण है। इस उत्सव के माध्यम से लाखों लोगों को यह याद दिलाया जाता है कि हमारी सांस्कृतिक विरासत में निहित शिक्षाएँ आधुनिक समाज में भी उतनी ही प्रासंगिक हैं।

मुख्य तथ्य

मुख्य तथ्य

  • वैल्मीकी जयंती 2024 का दिन: 17 अक्टूबर (पूरनिमा)
  • समय: 16 अक्टूबर शाम 8:40 से 17 अक्टूबर दोपहर 4:55 तक
  • मुख्य स्थल: थिरुवनिमीुर वैल्मीकी मंदिर, चेन्नई
  • उत्सव में भागीदारी: भारत‑नेपाल में 150+ मंदिर, 200,000+ भक्त
  • सरकारी बजट: 2.5 करोड़ रुपये का पुनर्स्थापन निधि

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

वैल्मीकी जयंती कब और कहाँ मनाई जाती है?

वैल्मीकी जयंती हर साल हिन्दू कैलेंडर के आश्विन महीने की पूर्णिमा पर पड़ती है। 2024 में यह 17 अक्टूबर को भारत के विभिन्न स्थल, विशेषकर चेन्नई के थिरुवनिमीुर वैल्मीकी मंदिर में धूमधाम से मनाई गई। नेपाल में भी प्रमुख बधियों द्वारा यह उत्सव आयोजित किया जाता है।

इस दिन किन विशेष अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता है?

मुख्य रूप से सुबह की पूजा, रामायण पाठ, और शाम को शौभा यात्रा होती है। परेड में वैल्मीकी की प्रतिमाएँ, पीत वस्त्र धारी संत, और शिल्पकारों द्वारा बनाई गई कलाकृतियों का प्रदर्शन किया जाता है। कई मंदिरों में ‘आदि‑कवि के दर्शन’ गीत भी गाए जाते हैं।

वैल्मीकी जयंती का सामाजिक महत्व क्या है?

वैल्मीकी न केवल रामायण के रचनाकार हैं, बल्कि सामाजिक समानता के अग्रदूत भी माने जाते हैं। उनकी कथा में सीता को आश्रय देना और लव‑कुश को शिक्षा देना जाति‑भेद को तोड़ने का प्रतीक है। आज बाल्मीकी समुदाय इस संदेश को सामाजिक सुधार और समावेशी शिक्षा के रूप में आगे बढ़ा रहा है।

क्या इस वर्ष के उत्सव में कोई नई पहल हुई?

हां, 2024 में दिल्ली के कई स्कूलों ने ‘रामायण पढ़ने का दिन’ आयोजित किया, जहाँ छात्रों ने मंचीय प्रस्तुति के जरिए महाकाव्य के प्रमुख प्रसंगों को जीवंत किया। साथ ही, सरकार ने वैल्मीकी मंदिरों के नवीनीकरण के लिये 2.5 करोड़ रुपये का बजट मंजूर किया।

भविष्य में वैल्मीकी जयंती के आयोजन में क्या परिवर्तन हो सकते हैं?

पंचांग के अनुसार तिथियों में परिवर्तन नहीं होने की उम्मीद है। हालांकि, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से वर्चुअल पूजा और ऑनलाइन रामायण पाठ जैसी नई तकनीकी पहलें जल्द ही मुख्यधारा बन सकती हैं, जिससे दूरस्थ समुदाय भी इस पावन अवसर में भाग ले सकेंगे।

rabindra bhattarai

लेखक :rabindra bhattarai

मैं पत्रकार हूं और मैं मुख्यतः दैनिक समाचारों का लेखन करता हूं। अपने पाठकों के लिए सबसे ताज़ा और प्रासंगिक खबरें प्रदान करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मैं राष्ट्रीय घटनाओं, राजनीतिक विकासों और सामाजिक मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान देता हूं।

टिप्पणि (16)

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Surya Banerjee अक्तूबर 7 2025

वैल्मीकी ज्यांती के बारे में पढ़कर बहोत अच्छा लगा, ऐसे आयोजन हमारे समुहिक बंधनों को और मजबूत बनाते हैं।

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Sunil Kumar अक्तूबर 7 2025

वाह, अंत में फिर एक और जयंती हो गई, लेकिन सच कहूँ तो इस बार कार्यक्रम में डिजिटल लाइव‑स्ट्रीमिंग जोड़ना काफ़ी उपयोगी रहेगा, ताकि दूर‑दराज़ के लोग भी भाग ले सकें।

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Ashish Singh अक्तूबर 8 2025

यह वैल्मीकी जयंती केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारे प्राचीन वैभव को स्मरण कराता है; ऐसे महत्त्वपूर्ण परम्पराओं को विदेशियों को प्रदर्शन करने की आवश्यकता नहीं, उन्हें अपने भीतर ही संरक्षित रखा जाना चाहिए।

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ravi teja अक्तूबर 8 2025

भाई लोग, आज‑कल तो हर जगह जुमले बनते हैं, लेकिन चेन्नई में इस शौभा यात्रा की धूम देख के दिल खुश हो गया, ज़रूर अगली बार भाग लूँगा।

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Harsh Kumar अक्तूबर 9 2025

बहुत बढ़िया आयोजन! 🙌 लोगों की संख्या देखकर आशा है कि भविष्य में और भी बड़े प्रोजेक्ट्स होंगे। 🎉

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suchi gaur अक्तूबर 10 2025

वैल्मीकी जयंती का ऐतिहासिक महत्व निरपेक्ष रूप से अभूतपूर्व है; यह परम्परा हमारी सभ्यता की जड़ें गहरा दर्शाती है। ✨

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Rajan India अक्तूबर 10 2025

मैं तो पूरे दिन थिरुवनिमीुर मंदिर में रहा, शौभा यात्रा में भाग लेता-लेता थक गया, लेकिन साहसिक रंग‑रूप और संगीत ने ऊर्जा भर दी।

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Parul Saxena अक्तूबर 11 2025

वैल्मीकी जयंती का इतिहास प्राचीन भारतीय काव्य के विकास में एक मील का पत्थर है।
यह उत्सव सामाजिक समावेशन का प्रतीक है, जहाँ जाति‑भेद को भूलकर सभी लोग समान रूप से भाग लेते हैं।
वैल्मीकी ने रामायण को शब्द‑संरचना की नई परिभाषा दी, जिससे भविष्य की कविताएँ आकार लेती हैं।
समकालीन शास्त्रीय संगीतकार भी इस अवसर पर शास्त्रीय रचना प्रस्तुत करते हैं, जिससे शिल्प की विविधता बढ़ती है।
अनेक विद्यालयों ने इस जयंती को शिक्षण‑सत्र के रूप में अपनाया, जहाँ छात्रों ने रामायण के प्रमुख प्रसंगों को नाट्य रूप में प्रस्तुत किया।
इस तरह के कार्यक्रम बच्चों में नैतिक मूल्यों को सुदृढ़ करते हैं और उन्हें इतिहास से जोड़ते हैं।
वैल्मीकी जयंती के दौरान आयोजित शौभा यात्रा में स्थानीय कारीगरों के हस्तनिर्मित कलाकृतियों की प्रदर्शनी देखी जाती है।
इन कलाकृतियों में पारम्परिक पटलचित्र, धातु का काम और कांच की सजावट शामिल हैं, जो सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखती हैं।
धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने समानता और शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए संवाद सत्र आयोजित किए।
ऐसे सत्रों में नागरिकों को सामाजिक सुधार के बारे में जागरूक किया जाता है, जिससे सामुदायिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है।
वैल्मीकी के आदर्शों को आधुनिक समय की चुनौतियों में लागू करने के लिये नई डिजिटल पहलें भी शुरू की गई हैं।
उदाहरण के तौर पर, ऑनलाइन रामायण पाठ और वर्चुअल मंदिर दर्शन को सक्षम किया गया है।
इन पहल से दूरस्थ क्षेत्रों के लोग भी इस पावन पर्व में भाग ले सकते हैं।
भविष्य में यदि सरकार इस प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को निरंतर समर्थन दे, तो जनजागरूकता और राष्ट्रीय एकता में उल्लेखनीय सुधार होगा।
अंततः, वैल्मीकी जयंती हमें याद दिलाती है कि हमारे पूर्वजों की सांस्कृतिक संपदा आज भी समकालीन जीवन को समृद्ध कर सकती है।

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AMRESH KUMAR अक्तूबर 11 2025

वैल्मीकी जयंती में रंग‑बिरंगे झंडे और ध्वनि‑संगीत ने माहौल को जीवंत बना दिया।

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uday goud अक्तूबर 12 2025

वॉल्मीकी जयंती, एक अद्भुत अवसर; यह न केवल आध्यात्मिक, बल्कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान का भी प्रतीक है; इस परम्परा को आगे बढ़ाते हुए, हमें अपनी धरोहर को संरक्षित करना चाहिए; यह हमारा कर्तव्य है!;

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Chirantanjyoti Mudoi अक्तूबर 12 2025

यह आयोजन सभी आयु वर्ग के लोगों को जोड़ता है, विशेषकर युवा वर्ग को काव्य और इतिहास के प्रति जागरूक करता है।

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Vishal Kumar Vaswani अक्तूबर 13 2025

क्या आप जानते हैं कि इस जयंती के पीछे कुछ छिपे हुए एजेंडा हो सकते हैं? 🤔 कुछ समूहों का उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ जुटाना हो सकता है।

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Zoya Malik अक्तूबर 14 2025

ऐसे समारोह हमारे सांस्कृतिक एकता को दर्शाते हैं।

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Ashutosh Kumar अक्तूबर 14 2025

शौभा यात्रा में संगीत की ध्वनि इतनी तीव्र थी कि ऐसा लगा जैसे स्वर्गीय गाथा धरती पर उतर आई! हर कदम पर रोशनी और ध्वनि का संगम, मन में उछलते उत्साह को रोक नहीं पाया।

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Gurjeet Chhabra अक्तूबर 15 2025

ये जयंती सभी के लिए एक सीख भी है, एकता और भाईचारे की।

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Neha Shetty अक्तूबर 15 2025

वैल्मीकी जयंती के बारे में आप सबकी राय सुनकर अच्छा लगा, इस तरह के कार्यक्रम हमें और करीब लाते हैं, धन्यवाद! 😊

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