बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों के कोटा सिस्टम को लेकर देशभर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, जो हिंसा का रूप ले चुके हैं। छात्रों के इन प्रदर्शनों में अब तक पांच लोगों की मौत हो चुकी है और दर्जनों घायल हो गए हैं। यह आपदा 16 जुलाई को तब शुरू हुई जब उच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरियों में कोटा सिस्टम को बहाल करने का आदेश दिया। इस कोटा सिस्टम के तहत स्वतंत्रता संग्राम के समय लड़े हुए सैनिकों के परिवारों के लिए 30% नौकरियों को आरक्षित किया गया है। इसके अलावा, इस कोटा सिस्टम में महिलाओं, विकलांग व्यक्तियों और जातीय अल्पसंख्यकों के लिए भी नौकरियों में आरक्षण का प्रावधान है।
प्रदर्शनकारी इस कोटा सिस्टम को भेदभावपूर्ण मानते हैं और इसे मेरिट आधारित सिस्टम से बदलने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह सिस्टम प्रधानमंत्री शेख हसीना के समर्थकों के लाभ के लिए बनाया गया है। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है, लेकिन इसके बावजूद विरोध जारी है। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि सक्षम और योग्य उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में अवसर मिलना चाहिए, जबकि कोटा सिस्टम इसके विपरीत है।
प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कोटा सिस्टम का कट्टर समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि यह सिस्टम उन सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करता है जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी। उनके अनुसार, स्वतंत्रता संग्राम के सैनिकों के परिवारों को इस सम्मान का हकदार माना जाना चाहिए। इसके बावजूद, प्रदर्शनकारियों का मानना है कि यह सिस्टम केवल राजनीति लाभ के लिए इस्तेमाल हो रहा है और इसे तत्काल बंद किया जाना चाहिए।
16 जुलाई को शुरू हुए विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे उग्र होते गए। सबसे प्रमुख झड़पों में से एक 15 जुलाई को ढाका विश्वविद्यालय में हुई, जहां पुलिस और प्रो-सरकार छात्र संगठनों के साथ प्रदर्शनकारियों की भिड़ंत हो गई। इसके बाद झड़पें फैल गईं और जहीरनगर विश्वविद्यालय, सावर और देश के अन्य हिस्सों में भी हिंसक घटनाएं हुईं। विश्वविद्यालय परिसरों में, छात्रों ने प्रदर्शन करते हुए सड़कों पर जाम लगा दिया। पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोले का सहारा लिया। प्रोटेस्ट ने दैनिक जीवन को पूरी तरह से अस्त-व्यस्त कर दिया है, ढाका सहित कई प्रमुख शहरों में जीवन रुक सा गया है।
बांग्लादेश का यह कोटा सिस्टम विवाद का मुख्य विषय बना हुआ है। इस सिस्टम के तहत सैनिकों के परिवारों के लिए 30% आरक्षण के साथ-साथ महिलाओं, विकलांगों और जातीय अल्पसंख्यकों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है। समर्थकों का तर्क है कि यह सिस्टम उन समूहों को अवसर प्रदान करता है जो ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर रहे हैं और इसमें मुकाबला की कमी रही है। हालांकि, विरोधी इसे उनके अधिकारों का हनन मानते हैं जो गुण और गुणवत्ता के आधार पर नौकरी पाने के लिए पात्र हैं।
यह कोटा सिस्टम पिछले कुछ समय से विवाद में है। पहले भी इसे न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था, लेकिन राजनीतिक दबाव और समर्थन के कारण इसे फिर से लागू किया गया। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि इस तरह के कोटा सिस्टम को समाप्त कर, योग्यता और क्षमताओं के आधार पर नौकरियां वितरित की जानी चाहिए। यह विषय न केवल छात्रों बल्कि समाज के सभी वर्गों को प्रभावित करता है।
उच्च न्यायालय के आदेश से पहले ही इस कोटा सिस्टम को लेकर न्यायिक और राजनीतिक लड़ाई चल रही है। सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही उच्च न्यायालय के फैसले को मंजूर नहीं किया था और इस पर रोक लगा दी थी, बावजूद इसके, विरोध अभी भी जारी है। सरकार का कहना है कि यह सिस्टम न्यायसंगत है और समाज में प्रभावी संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है। लेकिन विरोध करने वाले इससे संतुष्ट नहीं हैं और सरकार की नीति को अधिनायकवाद के रूप में देख रहे हैं।
आलोचकों का कहना है कि सरकार को चाहिए कि वह इस मुद्दे पर पुनर्विचार करे और दोनों पक्षों को बातचीत के जरिए समाधान तलाशे। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि इस कोटा सिस्टम को खत्म कर नए कानून बनाए जाएं जो योग्यता आधारित हों। यह एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा है जिस पर तेजी से कार्रवाई की जरूरत है, वरना देश में अस्थिरता पैदा हो सकती है।
बांग्लादेश में प्रदर्शनों का यह सिलसिला बढ़ते जा रहा है और स्थिति कब सामान्य होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। यह देखते हुए कि यह मुद्दा सामाजिक और राजनीतिक दोनों रूपों में काफी गहरा है, ऐसे में स्थायी समाधान मिलना जरूरी हो गया है। सरकार को चाहिए कि वह जल्द से जल्द इस पर कोई निर्णय ले ताकि स्थिति नियंत्रित की जा सके और आम जनता का भरोसा बहाल हो सके।
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