22 सितंबर को रात के दो बजे के करीब, तिराह वैली के छोटा‑सा गांव मात्रे दारा में एक तेज़ आवाज़ गूँजी। स्थानीय लोगों ने बताया कि उस समय चीनी‑निर्मित JF-17 जेट ने आठ LS‑6 लेज़र‑गाइडेड बम्ब गिराए, जिससे कम से कम तीस लोग, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी शामिल थे, मारे गए। यह घटना खैबर पख्तूनख्वा की सबसे नाज़ुक नाजुक क्षेत्र में हुई, जहाँ पुख़्तून‑बहुल जनसंख्या हमेशा असुरक्षा के डर में रहती है।
पुलिस ने इस कहानी को उलटा पेश करने की कोशिश की। उनका कहना है कि वह स्थान एक तालिबान कमांडर का छिपने का ठिकाना था और वहाँ बम बनाने की सामग्री जमा थी। उन्होंने कहा कि वो सामग्री अचानक फट गई, जिससे 24 लोग, जिनमें 14 मिलिशिया और कम से कम 10 आम नागरिक शामिल थे, मारे गए। इस बयान के साथ ही उन्होंने कई साक्षी‑गवाहों को चुप रहने की सलाह भी दी।
दोनों पक्षों की कहानियों में अंतर इतना स्पष्ट है कि स्थानीय लोग उलझन में हैं। कई ग्रामीणें कहती हैं कि उन्होंने जेट को फुर्सत से ऊपर उड़ते देखे, धुएँ के बाद छोटे‑छोटे घरों में आग लग गई और ढेर सारी जिंदगियां समाप्त हो गईं। जबकि पुलिस ने सभी बम निर्मित सामग्री की लिस्ट पेश कर दी, पर वो सबूत अभी तक जनता को नहीं दिखाए गए।
हवाई हमले की खबर फैलते ही तिराह वैली में सड़कों पर जमा भावनाएँ शिखर पर पहुँच गईं। सैकड़ों लोग दो दिन से अधिक समय तक हड़ताल में रहकर, पुलिस बैरियों के सामने झंडे और मीमांसा के साथ खड़े हैं। उनके मांगे स्पष्ट हैं:
खैबर पख्तूनख्वा के विपक्षी नेता भी इस पर कड़ा बयान दे रहे हैं। एक सांसद ने कहा, "सुरक्षा बलों ने अपने ही लोगों पर हमला कर दिया, यह लोकतंत्र की बुनियाद को हिला देता है"। दूसरा नेता इस बात को दोहराते हुए कहा कि यह कार्रवाई सिर्फ़ अल्पकालिक टैक्टिक नहीं, बल्कि बलपूर्वक जनसंख्या को डराने की रणनीति हो सकती है।
मानवाधिकार आयोग ने इस घटना को "कट्टर निराशाजनक" कहा और तुरंत स्वतंत्र जांच की मांग की। आयोग ने कहा, "चाहे बम विस्फोट हो या हवाई हमला, नागरिक हताहत कभी भी बर्दाश्त नहीं किए जा सकते"। उन्होंने यह भी नोट किया कि इस तरह की घटनाएँ चीनी‑पाकिस्तानी सैन्य सहयोग को उजागर करती हैं, जहाँ JF‑17 जेट और LS‑6 बम्ब की डिलीवरी बढ़ रही है।
हालाँकि सैन्य और सरकार इन सभी सवालों का कोई आधिकारिक उत्तर नहीं दे पाई है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय संगठनों और पड़ोसी देशों की नज़रें अब इस दिशा में टिकी हैं। कई विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि ऐसी घटनाएँ दोहराई गईं, तो खैबर पख्तूनख्वा में तनाव सिर्फ़ बढ़ेगा, ना कि घटेगा।
यह घटना न सिर्फ़ एक स्थानीय त्रासदी है, बल्कि पूरे क्षेत्र में सुरक्षा नीतियों, अंतरराष्ट्रीय सैन्य सहयोग, और नागरिक अधिकारों की बहस को फिर से जन्म देती है। आगे क्या होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सरकारी संस्थाएँ कितना तेज़ी से पारदर्शी जांच शुरू करती हैं और लोगों की मांगों को कितना गंभीरता से लेती हैं।
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