नवरात्रि के अंतर्गत नौ दिव्य रूपों में से चौथा दिन कुशमांडा को समर्पित है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि वह ब्रह्माण्ड को सृष्टि करने वाली शक्ति है, जो सूर्य की रोशनी में स्थित है और सम्पूर्ण जगत को उज्ज्वल करती है। इस दिन की पूजा से बुध ग्रह की सकारात्मक ऊर्जा खुलती है, जिससे विद्या, तेज‑बुद्धि और विचारों में स्पष्टता आती है। भक्तों का मानना है कि कुशमांडा की कृपा से आर्थिक तनाव, रोग‑दु:ख और नकारात्मक सोच दूर होती है, और जीवन में समृद्धि तथा शांति का वास होता है।
कुशमांडा को आठ भुजाओं वाली (अष्टभुजा) देवी के रूप में दर्शाया जाता है, जो सिंह की पीठ पर सवार होती हैं। उनके हाथों में माला, अमृतकलश, तलवार, त्रिशूल और अन्य पवित्र आयुध होते हैं। इस रूप को देख कर भक्तों में आशा की रौशनी जल उठती है, क्योंकि वह अंधकार को भेद कर नई ऊर्जा प्रदान करती है।
इस विशेष दिन में सूर्य और बुध के प्रभाव को संतुलित करने हेतु कुछ विशिष्ट रिवाज अपनाए जाते हैं। सबसे पहले पूजा स्थल को साफ‑सुथरा करके स्वच्छता का ध्यान रखें। फिर नीचे लिखे गए क्रम में सामग्रियों को सजाकर देवी को अर्पित करें:
भोजन के रूप में कुशमांडा को कद्दू के व्यंजन, भिंडी की सब्जी और पीला रस लेकर प्रस्तुत किया जाता है। यह रंग‑प्रसाद देवी को प्रसन्न करता है और प्रसाद के रूप में भक्तों को वितरित किया जाता है। पूजा के बाद पुराण या दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ किया जाता है। अन्त में कुशमांडा की आरती गाकर सभी को शुद्धिकरण की प्राप्ति की कामना की जाती है।
ध्यान दें: पीले रंग को विशेष महत्व देने से मात्र बाहरी दर्शनीयता नहीं, बल्कि मन की शुद्धि भी होती है। इस रंग को लेकर ध्यान, मंत्र जप या योग से जुड़े अभ्यास करने से बुध की प्रभावी ऊर्जा ग्रहण की जा सकती है। कई ज्योतिषियों का कहना है कि यदि आप इस दिन गुब्बारे या धूप के मोमबत्तियों को पीले रंग में रखें, तो वह आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाएगा।
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