केंद्रीय बोर्ड ऑफ़ डायरेक्ट टैक्सेज़ (CBDT) ने अपने फ़ेसलेस मूल्यांकन ढांचे में कई ठोस इंट्रीग्रेसन किए हैं, जिसका मकसद टैक्सपेयर्स को अनावश्यक सवालों से बचाना और पूरी प्रक्रिया को डिजिटल बनाना है। यह बदलाव 21 अगस्त 2025 को राष्ट्रपति द्वारा मंज़ूर हुए नए आयकर 2025 अधिनियम की रोशनी में आया है।
पहले 13 अगस्त 2020 को "हॉनरिंग द इHonest" प्लेटफ़ॉर्म के ज़रिये शुरू किए गये फ़ेसलेस असेसमेंट को अब फेसलेस मूल्यांकन के नाम से आधिकारिक तौर पर कानूनी मान्यता मिली है, जब सेक्शन 144B को आयकर अधिनियम 1961 में जोड़ा गया। तब से इस सिस्टम में ई‑असेसमेंट पूरी तरह ऑनलाइन किया जाता है, बिना सीधे टैक्सपयर‑अधिकारी संपर्क के।
अब इस सिस्टम को तकनीकी‑सपोर्टेड मॉड्यूल्स, AI‑आधारित जाँच और विशेष इलेक्ट्रॉनिक असेसमेंट यूनिट्स से सुदृढ़ किया गया है। ये यूनिट्स जटिल मामलों को पहचानने, दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता जाँचने और फैसले तैयार करने में मदद करती हैं, जिससे मानव त्रुटि की संभावना बहुत घटती है।
2025‑26 वित्तीय वर्ष के लिए CBDT ने उन रिटर्न्स को निर्धारित किया है जिन्हें पूरी तरह से जांचा जाना अनिवार्य है। इनमें 2024‑25 में दाखिल किए गए ITR‑7 के छूट दावे, बार‑बार उठाए जाने वाले विवाद, और खोज‑और‑सर्वे केस शामिल हैं। ऐसी चयन प्रक्रिया का नाम है कंप्यूटर‑असिस्टेड स्क्रूटिनी सिलेक्शन (CASS), जो AI की मदद से संदेहास्पद रिटर्न को फ़्लैग करता है और साथ‑साथ कुछ पूर्वनिर्धारित मामलों को वैधानिक रूप से जांच के लिए चुनता है।
एक बार जब रिटर्न CASS द्वारा चुना जाता है, तो टैक्सपायर को सेक्शन 143(2) के तहत नोटिस मिलता है। इसे ऑनलाइन अपलोड किए गए दस्तावेज़, रिकॉर्ड और स्पष्टीकरण के साथ जवाब देना होता है—सभी फ़ेसलेस प्लेटफ़ॉर्म पर। नोटिस मिलने के 30 दिनों के भीतर जवाब नहीं देने पर संभावित दंड के खतरे बढ़ते हैं, इसलिए अब समय पर जवाब देना बेहद ज़रूरी है।
इन सुधारों का सीधा असर टैक्सपेयर्स पर पड़ता है। अब अनावश्यक क्वेरीज़ कम होने से उन्हें अपने काम पर फोकस करने का समय मिलता है। प्रोसेसिंग टाइम भी घटा है—कभी कुछ हफ़्ते में ही सभी दस्तावेज़ जमा कर ले सकते हैं, जबकि पहले कई महीनों का इंतज़ार करना पड़ता था। साथ ही, डिजिटल रिकॉर्ड रखने से कर चोरी के केस कम होते हैं और प्रशासनिक पारदर्शिता बढ़ती है।
नया आयकर 2025 अधिनियम सरकार को और CBDT को अधिकार देता है कि वे आगे चलकर नई नियमावली और योजनाएं जारी कर सकें, खासकर फ़ेसलेस, तकनीकी‑भारी प्रक्रियाओं के लिए। अप्रैल 2026 से लागू होने वाले इस अधिनियम में यह स्पष्ट किया गया है कि सभी नई स्कीमों को इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म पर ही आधार देना होगा, जिससे भविष्य में भी टैक्सपेयर्स को कम परेशानी होगी।
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