रतन टाटा के निधन के बाद, उनकी वसीयत का खुलासा हुआ, जो 10,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को लेकर काफी चर्चा में रही। उनकी वसीयत में खासकर शंतनु नायडू का नाम उभर कर सामने आया। शंतनु नायडू, जो 'द गुडफेलोज' के संस्थापक हैं और जिन्होंने टाटा के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए थे, उन्हें इस वसीयत में विशेष स्थान दिया गया। इसके अलावा, टाटा की वसीयत में उनकी कई संपत्तियों और व्यक्तिगत भावनाओं का जिक्र किया गया है जो भविष्य में भी उनके योगदान को जीवित रखेगा।
शंतनु नायडू के प्रति रतन टाटा की जिम्मेदारी और आत्मीयता का अंजाम इस वसीयत में देखा जा सकता है। टाटा ने 'द गुडफेलोज' में अपनी हिस्सेदारी छोड़कर और नायडू की विदेश शिक्षा कर्यों में सहायता के रूप में उनकी शिक्षा खर्च प्रायोजित करके ये दर्शाया है। यह सावधानी से बनाई गई वसीयत रतन टाटा की उदारता और दानशीलता के अद्वितीय उदाहरण को दर्शाती है।
रतन टाटा की संपत्ति में कई आकर्षक अचल संपत्तियाँ शामिल हैं, जैसे कि अलिबाग में 2,000 वर्ग फुट का बीच बंगला, और एक दो-मंजिला मकान जो जुहू तारा रोड पर स्थित है। इसके अलावा, उन्होंने 0.83 प्रतिशत हिस्सेदारी टाटा संस में भी Ratan Tata Endowment Foundation के नाम कर दी है। यह संपत्तिें उनकी जीवनभर की मेहनत और समर्पण की पहचान हैं, जो कि न केवल उनके परिवार के लिए बल्कि उनके सामाजिक कार्यों के लिए भी उपयोगी सिद्ध होंगी।
जिम्मी टाटा, शिरीन और डायना जेजेबॉय जैसे परिवार के सदस्य भी टाटा की इस वसीयत में शामिल हैं, जिन्हें उन्होंने उनके बेहतर भविष्य के लिए समर्थन दिया है। इसके अतिरिक्त, अपने देखभालकर्ताओं और मददगारों को में भी उन्होंने उल्लेखनीय धरोहरें प्रदान की हैं।
टाटा की वसीयत में एक महत्वपूर्ण विचारणीय बात यह है कि उन्होंने अपने पालतू कुत्ते टिटो के लिए 'अनलिमिटेड केयर' यानी असिमित देखरेख की भी बात की है। यह दिखाता है कि रतन टाटा न केवल मानवता के प्रति बल्कि पशुओं के प्रति भी बेहद संवेदनशील थे।
उनकी वसीयत में दर्शायी गई उद्यमशीलता इस बात का प्रमाण है कि रतन टाटा ने अपने जीवन को परोपकार के लिए कैसे समर्पित किया। उनके प्रयास न केवल उनके परिवार या दोस्तों के लिए बल्कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए भी है जिनके लिए उन्होंने Scholarship और COVID-19 संकट के दौरान दान किए थे।
रतन टाटा के निधन के बाद जो जनता के समक्ष यह वसीयत आई, उसमें न केवल उनके निजत्व बल्कि समाज के प्रति उनकी संवेदनशील प्रतिबद्धता के भी स्पष्ट प्रमाण हैं। टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से उन्होंने स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, ग्रामीण विकास और टिकाऊ जीवन जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
समाज के प्रति अपनी उदारता का सम्मान करते हुए, यह वसीयत उनके योगदान और उद्यमशीलता को एक अद्वितीय परिप्रेक्ष्य में देखने का अवसर प्रदान करती है। इस वसीयत के माध्यम से समाज में उनकी उपस्थिति और गरिमा हमेशा बनी रहेगी, जबकि उनके द्वारा शुरू किए गए प्रयास निस्संदेह समाज के लिए दिशानिर्देशक होंगे।
टिप्पणि (12)
Ashutosh Kumar अक्तूबर 26 2024
क्या बात है, रतन टाटा ने नायडू को इतना बड़ा गिफ्ट दिया!
Gurjeet Chhabra अक्तूबर 27 2024
रतन टाटा की वसीयत में शंतनु नायडू का नाम देखना दिल को छू गया। यह दिखाता है कि उन्होंने सच्चे सहयोगियों को सम्मान दिया। टाटा साहब की उदारता हमेशा याद रहेगी।
Ashish Singh अक्तूबर 28 2024
देश के महान उद्योगपतियों का ये कार्य हमारे राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाता है। रतन टाटा की परोपकारी भावना हमें एकजुट करती है। ऐसी वसीयत सामाजिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
ravi teja अक्तूबर 29 2024
वाह, टाटा भाई ने तो वाकई में दोस्ती के नए मानक स्थापित कर रखे हैं। शंतनु भाई को इतना भरोसा देना बहुत ही कूल है। ऐसे लोग ही समाज में पॉज़िटिव बदलाव लाते हैं।
Vishal Kumar Vaswani अक्तूबर 30 2024
क्या पता इस वसीयत के पीछे कोई छुपा हुआ एजेंडा है? 🤔 शायद टाटा परिवार के भीतर शक्ति संतुलन बदल रहा है। 🕵️♂️
Chirantanjyoti Mudoi अक्तूबर 31 2024
रतन टाटा की इस वसीयत के कई पहलू हम अनदेखे नहीं कर सकते। सबसे पहले, शंतनु नायडू को प्रमुख स्थान देना सामाजिक नेटवर्किंग का प्रतीक है। दूसरे, यह दिखाता है कि टाटा ने व्यक्तिगत संबंधों को व्यावसायिक रणनीति से अलग नहीं किया। तीसरे, इस निर्णय से टाटा की परोपकारी छवि को मजबूती मिलती है।
चौथा, संपत्तियों का बंटवारा पारिवारिक इकाई में एक सुदृढ़ता लाने की कोशिश है। पाँचवाँ, टिटो के लिए अनलिमिटेड केयर का उल्लेख दर्शाता है कि उन्होंने सभी जीवन रूपों को महत्व दिया।
छठा, इस वसीयत में उल्लेखित रियल एस्टेट प्रॉपर्टी मुंबई की विकासशील पृष्ठभूमि को उजागर करती है। सातवाँ, टाटा संस में हिस्सेदारी का ट्रांसफर सामाजिक उत्तरदायित्व को दर्शाता है।
आठवाँ, यह बताता है कि टाटा ने अपने परिवार को भी आर्थिक सुरक्षा दी है। नवँ, यह कदम आर्थिक असमानता को कम करने की दिशा में एक छोटा प्रयास है। दसवाँ, वसीयत में दान और स्कॉलरशिप का उल्लेख भविष्य की पीढ़ी को सशक्त बनाता है।
ग्यारहवाँ, टाटा की यह पहल भारतीय उद्योगपतियों के लिए एक मिसाल बन सकती है। बारहवाँ, इस प्रकार की खुली वसीयत सार्वजनिक भरोसा बढ़ाती है। तेरहवाँ, यह हमें याद दिलाती है कि व्यक्तिगत धारणाएँ भी राष्ट्रीय विकास में योगदान दे सकती हैं। चौदहवाँ, सभी पहलुओं को मिलाकर यह वसीयत एक सामाजिक अनुबंध की तरह काम करती है। पन्द्रहवाँ, अंततः, टाटा की इस विरासत को समझना और सम्मान देना सभी के लिए आवश्यक है।
Surya Banerjee नवंबर 1 2024
भाईसाहब, तुम तो काफ़ी गहरी बात लिखी है, पर थोड़ा आसान भाषा में समझा तो और बधिया हो जाता।
Sunil Kumar नवंबर 2 2024
विषाल भाई, तुम्हारे सिद्धांतों पर थोड़ा हँसी निकालना चाहूँगा 😏। वसीयत में इमोजी नहीं, बल्कि वास्तविक आंकड़े चाहिए होते। लेकिन ठीक है, तुम जैसा देखो।
AMRESH KUMAR नवंबर 3 2024
हमारे महान भारत के सर्वश्रेष्ठ उद्यमी ने अपने सहकर्मी को इतना सम्मान दिया, यह राष्ट्रीय गर्व की बात है। हमें ऐसे लग्ज़री दान को बढ़ावा देना चाहिए।
Neha Shetty नवंबर 4 2024
नायडू भाई को मिले इस सम्मान से प्रेरित होकर हम सभी को सहयोग की भावना अपनानी चाहिए। इस तरह की वसीयत सामाजिक बदलाव का अच्छा उदाहरण है।
Zoya Malik नवंबर 5 2024
वास्तव में, इस वसीयत में कुछ अति-स्वार्थी पहलू भी नज़र आते हैं। लेकिन इसे खुलेआम चर्चा करना जरूरी है।
bhavna bhedi नवंबर 6 2024
भवदीय, इस वार्ता में हम भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को भी सम्मिलित कर सकते हैं, जिससे एक समग्र दृष्टिकोण विकसित हो।