सप्तमी को Maa Kaalratri के रूप में जानी जाने वाली माँ का पूजन किया जाता है। ‘काल’ का अर्थ है मृत्यु और ‘रात्रि’ अंधकार, इसलिए इस रूप को अंधकार को नष्ट करने वाली शक्ति माना गया है। दैवीय ग्रन्थों के अनुसार, जब अधर्मियों ने स्वर्ग में अतिक्रमण करने की कोशिश की, तब देवी पार्वती ने अपना सुनहरा बाहरी आवरण हटाकर इस भयावह रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने शंभ और निशंभ सहित कई राक्षसों को परास्त किया, जिससे ब्रह्माण्ड में फिर से प्रकाश बहाल हुआ।
दुर्दम्य रूप के बावजूद, माँ कालरात्रि को शुभंकारी भी कहा जाता है, क्योंकि वह सभी बुराइयों का विनाश कर भक्तों को सुरक्षा प्रदान करती है। उनका वैरूप्य चार हाथों में झलकता है—दाएँ हाथ में अभय और वरदा मुद्रा, बाएँ हाथों में तलवार तथा लोहे का डमरु, जो नकारात्मक ताकतों को समाप्त करने के प्रतीक हैं।
सप्तमी की पूजा के लिए समय पर उठना, शुद्ध स्नान करना और नीले या नेवी‑ब्लू वस्त्र पहनना अनिवार्य है। यह रंग शक्ति और आध्यात्मिक अधिकार का प्रतीक माना जाता है। पूजा स्थल को साफ‑सुथरा रखें, जहाँ माँ का चित्र या मूर्ति प्रमुख स्थान पर स्थापित हो। प्रारम्भ में भगवान गणेश की आरती करके ऊर्जा को सकारात्मक बनाएं।
निम्नलिखित सामग्री को तैयार रखें:
पूजा की क्रमबद्धता इस प्रकार है:
पूजा के अंत में कपूर के साथ अंतिम आरती गाएँ। कुछ भक्त पंचामृत से शुद्धिकरण की प्रक्रिया भी जोड़ते हैं, जिससे समस्त कर्मों का शुद्धिकरण होता है और माँ की कृपा अधिकतम रूप में प्राप्त होती है।
सप्तमी के बाद शाम को अस्थायी रूप से तिथि बदलकर अष्टमी में प्रवेश होता है, जहाँ युवा कन्याओं की पूजा का आयोजन होता है। इसलिए इस दिन की समाप्ति को शुद्ध मन और शरीर के साथ करना अत्यावश्यक है, ताकि अगला चरण भी सफल हो सके।
टिप्पणि (3)
Karan Kamal सितंबर 23 2025
सप्तमी का दिन माँ कालरात्रि की शक्ति को महसूस करने का एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन का रंग नीला आध्यात्मिक अधिकार और साहस को दर्शाता है, इसलिए नीला वस्त्र पहनने की सलाह दी गई है। पूजा में पहले गणेश की आरती करके ऊर्जा को शुद्ध करना जरूरी है, इससे मन शांत रहता है। पंचामृत से स्नान कर अभिषेक करने से देवी की कृपा मिलती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। अंत में “ॐ देवी कालरात्र्यै नमः” मंत्र का उच्चारण किया जाता है, जो मन को स्थिर और दृढ़ बनाता है।
Navina Anand अक्तूबर 1 2025
काली रात में माँ की शक्ति का जश्न मनाना हमेशा सकारात्मक ऊर्जा लाता है। इस विशेष दिन में सुगंधित फूलों और चंदन के धूप से वातावरण को शुद्ध किया जाता है। मिठाइयों में गुड़ का प्रयोग माँ की कृपा को आकर्षित करने का प्रतीक है। प्रत्यक्ष रूप से मन की शांति पाने के लिए कम से कम एक घंटे तक ध्यान करना उपयोगी है। यह प्रक्रिया न केवल आध्यात्मिक बल्कि शारीरिक तंदुरुस्ती에도 लाभदायक है।
Prashant Ghotikar अक्तूबर 8 2025
पूजा की क्रमबद्धता में गणेश जी की आवाहन से प्रारम्भ होना चाहिए, इससे सभी बाधाएँ हटती हैं। उसके बाद पंचामृत से माँ कालरात्रि को स्नान कराते हैं, यह शुद्धिकरण का महत्वपूर्ण चरण है। धूप जलाने के बाद भोग के रूप में गुड़‑मिठाइयाँ रखना चाहिए, क्योंकि शर्करा देवी के साथ एक आध्यात्मिक संबंध बनाती है। मुख्य मंत्र को स्थिर भाव से दोहराने से मन में दृढ़ता आती है और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। अंत में कपूर के साथ अंतिम आरती करने से पूरे समागम का समाप्ति संतोषजनक होती है।