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Navratri साप्तमी: माँ कालरात्रि की पूजा व सुरक्षा का गहरा अर्थ
सित॰ 23, 2025
के द्वारा प्रकाशित किया गया rabindra bhattarai

माँ कालरात्रि का महत्व और कथा

सप्तमी को Maa Kaalratri के रूप में जानी जाने वाली माँ का पूजन किया जाता है। ‘काल’ का अर्थ है मृत्यु और ‘रात्रि’ अंधकार, इसलिए इस रूप को अंधकार को नष्ट करने वाली शक्ति माना गया है। दैवीय ग्रन्थों के अनुसार, जब अधर्मियों ने स्वर्ग में अतिक्रमण करने की कोशिश की, तब देवी पार्वती ने अपना सुनहरा बाहरी आवरण हटाकर इस भयावह रूप में प्रकट हुईं। उन्होंने शंभ और निशंभ सहित कई राक्षसों को परास्त किया, जिससे ब्रह्माण्ड में फिर से प्रकाश बहाल हुआ।

दुर्दम्य रूप के बावजूद, माँ कालरात्रि को शुभंकारी भी कहा जाता है, क्योंकि वह सभी बुराइयों का विनाश कर भक्तों को सुरक्षा प्रदान करती है। उनका वैरूप्य चार हाथों में झलकता है—दाएँ हाथ में अभय और वरदा मुद्रा, बाएँ हाथों में तलवार तथा लोहे का डमरु, जो नकारात्मक ताकतों को समाप्त करने के प्रतीक हैं।

सप्तमी का विस्तृत पूजा विधि

सप्तमी की पूजा के लिए समय पर उठना, शुद्ध स्नान करना और नीले या नेवी‑ब्लू वस्त्र पहनना अनिवार्य है। यह रंग शक्ति और आध्यात्मिक अधिकार का प्रतीक माना जाता है। पूजा स्थल को साफ‑सुथरा रखें, जहाँ माँ का चित्र या मूर्ति प्रमुख स्थान पर स्थापित हो। प्रारम्भ में भगवान गणेश की आरती करके ऊर्जा को सकारात्मक बनाएं।

निम्नलिखित सामग्री को तैयार रखें:

  • पवित्र जल (गंगा जल)
  • पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शर्करा)
  • सुखी फल, सतरा, जामुन
  • सूखे मेवे (बादाम, काजू)
  • रात्री के फूल‑जैसे चमेली या मोतिया
  • दीपक, अगरबत्ती, काठ
  • अक्षत, चावल, कोल्ही (रौली)
  • गुड़‑आधारित मिठाइयाँ (मालपूड़ी, लड्डू)

पूजा की क्रमबद्धता इस प्रकार है:

  1. गणेश जी का आवाहन और दीप प्रज्वलित करना।
  2. माँ कालरात्रि के सामने पंचामृत से स्नान कराएँ और फिर ऐसे ही जल से अभिषेक करें।
  3. सुगंधित जल और चंदन का प्रयोग करके धूप जलाएँ।
  4. भोग के रूप में गुड़‑मिठाइयाँ रखें, क्योंकि शर्करा को माँ की कृपा का माध्यम माना जाता है।
  5. मुख्य मंत्र "ॐ देवी कालरात्र्यै नमः" को कम से कम १०८ बार दृढ़ भाव से उच्चारण करें।
  6. अतिरिक्त श्लोक – "या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रुपेण संस्थिता" को दोहराएँ।
  7. महासप्तमी विशेष श्लोक – "दंष्ट्राकरालवदने शिरोमालाविभूषणे…" को सात बार उच्चारित करें।
  8. संतुलित मन से अष्टमी के लिए तैयार होने तक आरती एवं दीप प्रज्वलन जारी रखें।

पूजा के अंत में कपूर के साथ अंतिम आरती गाएँ। कुछ भक्त पंचामृत से शुद्धिकरण की प्रक्रिया भी जोड़ते हैं, जिससे समस्त कर्मों का शुद्धिकरण होता है और माँ की कृपा अधिकतम रूप में प्राप्त होती है।

सप्तमी के बाद शाम को अस्थायी रूप से तिथि बदलकर अष्टमी में प्रवेश होता है, जहाँ युवा कन्याओं की पूजा का आयोजन होता है। इसलिए इस दिन की समाप्ति को शुद्ध मन और शरीर के साथ करना अत्यावश्यक है, ताकि अगला चरण भी सफल हो सके।

rabindra bhattarai

लेखक :rabindra bhattarai

मैं पत्रकार हूं और मैं मुख्यतः दैनिक समाचारों का लेखन करता हूं। अपने पाठकों के लिए सबसे ताज़ा और प्रासंगिक खबरें प्रदान करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मैं राष्ट्रीय घटनाओं, राजनीतिक विकासों और सामाजिक मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान देता हूं।

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