एक ही गली, दो जर्सी, और सामने एशिया का बड़ा मंच। एशिया कप में शुक्रवार को जब अबू धाबी में टॉस होगा, तो एक अनोखी कहानी पिच पर चलेगी—कुलदीप यादव और विनायक शुक्ला, जो बचपन में कानपुर की गलियों में साथ खेलते थे, अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आमने-सामने होंगे। एक इंडिया ब्लू में, दूसरा ओमान रेड में।
विनायक शुक्ला 31 साल के हैं, विकेटकीपर-बैटर हैं और जन्म-पालन कानपुर में हुआ। उन्होंने माना कि कुलदीप के साथ लंबे समय तक मुकाबले का अनुभव अब काम आएगा। गेंद हाथ से छूटते ही किस लाइन पर पड़ेगी, उनकी गलत-सही (रॉन्गवन-स्टॉक बॉल) में फर्क कहां से पकड़ना है—ये सब उन्होंने गलियों और क्लब मैचों में सीखा। यही वजह है कि वे इस टकराव को भावुक होने से ज्यादा व्यावहारिक नजर से देख रहे हैं।
शुक्ला की राह सीधी नहीं थी। राज्य टीम में मौके कम मिले, तो 2021 में उन्होंने बड़ा फैसला लिया—भारत छोड़कर ओमान जाना। दिन में नेशनल मेटल कैन्स में डेटा ऑपरेटर की नौकरी और शाम को मेहनत के साथ क्रिकेट। यही संयम उन्हें ओमान की राष्ट्रीय टीम तक लाया। वे कहते हैं—टीम का ड्रेसिंग रूम कई देशों की खुशबू साथ लाता है, पर मैदान पर सब एक झंडे के लिए खेलते हैं।
कुलदीप की कहानी अलग मोड़ लेती है। वे बाएं हाथ के अनोखे कलाई स्पिनर हैं, जिनकी उड़ान (डिप), बहाव (ड्रिफ्ट) और गलत-सही का फर्क कई अनुभवी बैटर भी नहीं पढ़ पाते। उनकी रफ्तार, फ्लाइट और कलाई की देरी से खुलती चाबी—ये तीन चीजें अक्सर मिडिल ओवरों में खेल पलट देती हैं। शुक्ला जानते हैं कि उन्हें क्रीज का इस्तेमाल करना होगा, स्वीप-रिवर्स स्वीप सोच-समझकर लगाना होगा, और सबसे जरूरी—हाथ से गेंद पढ़नी होगी, सिर्फ पिच पर भरोसा नहीं।
ओमान के लिए यह मैच ऐतिहासिक है—सीनियर भारतीय टीम के खिलाफ पहला आधिकारिक मुकाबला। टीम टूर्नामेंट से बाहर हो चुकी है; पहले मैच में 93 रन की हार और फिर यूएई से 42 रन से शिकस्त ने रास्ता बंद कर दिया। अब दांव सिर्फ अंक तालिका नहीं, आत्मसम्मान पर है। सामने भारतीय टीम, जिसका नेतृत्व सूर्यकुमार यादव कर रहे हैं, और जिसका बेंच स्ट्रेंथ भी विरोधी पर दबाव बनाता है।
ओमान ड्रेसिंग रूम की सबसे बड़ी ताकत है विविधता। यहां भारत, पाकिस्तान और दक्षिण एशिया के दूसरे हिस्सों से आए खिलाड़ी एक साथ हैं। शुक्ला साफ कहते हैं—टीम में कोई 'यहां का' या 'वहां का' नहीं, सब भाई हैं। यह केमिस्ट्री छोटे बोर्ड्स के लिए अहम होती है, क्योंकि वो बड़े संसाधनों से नहीं, रिश्तों और अनुशासन से मैच जीतते हैं।
मैदान की बात करें तो अबू धाबी की सतह अक्सर धीमी रहती है। गेंद पुराने होने पर स्पिनरों को मदद मिलती है। स्क्वायर बाउंड्री लंबी है, इसलिए लॉफ्टेड शॉट का जोखिम सोच-समझकर लेना पड़ेगा। शाम की ड्यू अगर आई, तो स्पिनर की पकड़ प्रभावित होगी, पर नई गेंद से सीमरों को स्विंग भी मिल सकती है। ऐसे में टॉस भी रणनीति तय कर सकता है—पहले रन बोर्ड पर हों तो दबाव बनाना आसान, पीछा करते हुए ड्यू का साथ लेकिन स्पिन का असर कम।
भारत के लिए यह मैच सिर्फ दो अंक या नेट रन-रेट का सवाल नहीं। यह एक मौका है—बेंच पर बैठे खिलाड़ियों को मैच टाइम मिले, और बड़े मुकाबलों से पहले संयोजन स्थिर हो। वहीं ओमान के लिए यह एक विंडो है—दिखाने की कि वे बड़े नामों के खिलाफ टिक सकते हैं, लंबी साझेदारी कर सकते हैं, और आखिरी दस ओवर में खेल को सूखा नहीं रहने देंगे।
शुक्ला के लिए व्यक्तिगत स्तर पर चुनौती दोहरी है—कुलदीप को पढ़ना और विकेट के पीछे 120 ओवर की ऊर्जा बनाए रखना। विकेटकीपर-बैटर का प्रभाव स्कोरकार्ड से बड़ा होता है। अंदर-बाहर आती स्पिन पर एक तेज स्टंपिंग, हर ओवर में गेंदबाज के लिए सही फील्ड का संकेत, और पावरप्ले के बाद के अंतराल में टेंपो बनाए रखना—ये सब उनकी भूमिका का हिस्सा रहेगा।
कुलदीप के सामने जब शुक्ला आएंगे तो कुछ बातें तय रहेंगी—कलाई से निकलते ही गेंद को पढ़ने की कोशिश, फ्लाइट पर जल्दी डाउन-द-ट्रैक नहीं जाना, और अगर फील्डिंग 45 के आसपास भरी हुई हो तो रन-रोटेशन के लिए रिवर्स स्वीप का विकल्प। यहां गलत फैसला विकेट की कीमत पर होगा, और सही फैसला ओमान की पारी को ऑक्सीजन देगा।
टूर्नामेंट का माहौल बाहर से शोर वाला है। 'हैंडशेक-गेट' की चर्चा गर्म है और सबकी नजरें दुबई में होने वाले इंडिया-पाकिस्तान सुपर फोर मुकाबले पर हैं। लेकिन इस मैच में दोनों टीमों का फोकस अलग है—भारत अपने सिस्टम को ट्यून करेगा, ओमान अपने तंत्रिका तंत्र (नर्व्स) को स्थिर करेगा। कभी-कभी बड़े टूर्नामेंट की असली कहानियां ऐसे ही छोटे मोड़ों पर लिखी जाती हैं।
किसी भी असमान मुकाबले में बैलेंस वहीं बनता है जहां छोटी टीम बुनियादी चीजें बिना गलती करती है। ओमान को शुरुआत में ही दो चीजें करनी होंगी—नए गेंदबाज को ज्यादा चौड़े नहीं जाना, और 1-1 रन को रोके बिना 4-4 रन की तलाश बंद नहीं करना। छह ओवर में 35/0 उनकी पारी को सेट कर देगा, जबकि 20/3 कहानी खत्म कर सकता है।
भारत के लिए चेकलिस्ट अलग है। पॉवरप्ले में विकेट, मिडिल ओवर में स्पिन से स्क्रू, और डेथ में यॉर्कर-पेस ऑफ़ का संयम। अगर टॉप ऑर्डर 10 ओवर में 85-90 तक पहुंच गया तो ओमान के लिए 280-300 का पीछा करना मुश्किल होगा। यहां एक बात और—फील्डिंग स्टैंडर्ड। बड़े टूर्नामेंट में कैच छोड़ना मोमेंटम तोड़ देता है; यह भारत जानता भी है और मानता भी।
अब बात उस व्यक्तिगत टकराव की, जो इस मुकाबले को अलग बनाती है। शुक्ला अगर 25-30 गेंद टिकते हैं और स्ट्राइक फेरबदल रख पाते हैं, तो कुलदीप को लेंथ बदलनी पड़ेगी। वहीं कुलदीप की एक ओवर की मिस्ट्री—दो डॉट, एक गलत-सही, एक स्लोअर-फ्लैटर—बैटर की रफ्तार छीन लेती है। यहां खेल उस एक ओवर की कीमत पर आएगा—जहां या तो शुक्ला सेट होंगे या कुलदीप मैच का मुंह मोड़ेंगे।
ओमान की टीम कल्चर पर लौटें तो यह खास है। अलग पृष्ठभूमि से आए खिलाड़ी एक कमरे में दुआएं और योजनाएं बांटते हैं। शुक्ला कहते हैं—टीम में कभी नहीं लगा कि कोई भारत या पाकिस्तान से है। यह भावना नतीजों में दिखती है। बड़े बोर्ड के खिलाफ स्कोरलाइन भले भारी हो, पर आखिरी दस ओवर तक खेलना, एटीट्यूड नहीं छोड़ना—इसी से नया ओमान बनेगा।
आकड़ों की भाषा में देखें तो ओमान की सबसे बड़ी चुनौती स्ट्राइक रोटेशन है। एक रन की कीमत टी20 में जितनी नहीं, 50 ओवर्स में उससे दुगनी होती है। डॉट बॉल प्रतिशत कम किया तो 220 भी चुनौती बन सकता है। वहीं भारत को नेट रन-रेट ध्यान में रखना होगा—तो पावर हिटिंग का इस्तेमाल भी होगा, और स्क्वायर एरिया में गैप ढूंढने का कौशल भी।
अबू धाबी की हवा से स्विंग आती है, पर सूरज ढलने के बाद नमी बैक ऑफ लेंथ को असरदार बनाती है। ऐसे में भारतीय तेज गेंदबाज शुरुआत में स्टंप-टू-स्टंप रहेंगे, और बाद में हार्ड लेंथ पर आएंगे। ओमान अगर इस फेज में बाउंड्री नहीं निकाल पाए, तो उन्हें 1-2 के रन से स्कोर चलता रखना होगा—यही जगह पर विकेटकीपर-बैटर का फुटवर्क काम आएगा।
एक और कोण—माइंडसेट। भारत के खिलाड़ियों के लिए यह मैच पेशेवर रूटीन का हिस्सा है, पर ओमान के लिए यह अपने करियर की सबसे बड़ी शाम हो सकती है। ऐसी रातों में एड्रेनालिन गलत शॉट बनवाता है। इस जाल से बचना होगा। शुक्ला के पास यहां एक फायदा है—कुलदीप के साथ सालों का सामना। वे जानते हैं कि गेंद हवा में देर तक रहने पर क्या करना है, और जब फील्डिंग 45 के अंदर कसी हो तो रन कैसे चुराने हैं।
भारत की टीम मैनेजमेंट भी यह मुकाबला पढ़ रही होगी। कौन सा ऑलराउंडर सही बैलेंस देगा, डेथ में किसकी यॉर्कर सबसे भरोसेमंद है, और मिडिल ओवर में किस स्पिनर की इकॉनमी स्थिर है—ये सभी सवाल सुपर फोर से पहले यहीं सुलझाए जाएंगे। यहां एक विकल्प और—अगर टॉप ऑर्डर जल्द चल पड़े तो नंबर 5-6 के लिए मैच-टाइम बढ़ाया जाए।
ओमान के कप्तान और कोच की बैठक में बातें सीधी होंगी—'पहले 15 ओवर बिना घबराहट', 'मिडिल में एक साझेदारी 60+', 'डेथ में 8-9 की रफ्तार'। बॉलिंग में 'एक छोर टाइट', 'कैच 100%', 'फालतू नो-बॉल शून्य'। यह बुनियादी बातें सुनने में आसान लगती हैं, पर बड़ी टीम के खिलाफ इन्हीं छोटी चूकों से अंतर खुलता है।
मैच के बाहर की हवा में दूसरी कहानियां भी हैं—'हैंडशेक-गेट' ने चर्चा बढ़ा दी है और इंडिया-पाकिस्तान टकराव पर नजरें टिकी हैं। पर इस रात की असल खूबसूरती यही है कि एक खिलाड़ी, जो कभी कानपुर के PAC ग्राउंड में नेट लगाता था, अबू धाबी में बचपन के साथी के खिलाफ गार्ड लेगा। और दूसरी ओर, वह साथी अपनी कलाई की जादू से उसे फंसाने की कोशिश करेगा। यही तो क्रिकेट है—रिश्तों के बीच पेशेवर रेखा, और उस रेखा पर चलती एक गेंद।
तो कहानी साफ है—ओमान गर्व के लिए खेलेगा, भारत प्रक्रिया के लिए। और बीच पिच पर, एक पुरानी दोस्ती आज की रणनीति से टकराएगी। यह मुकाबला स्कोरकार्ड में दो पंक्तियों से ज्यादा है। यह याद दिलाता है कि खेल सीमाओं को नहीं, इंसानी यात्राओं को आगे बढ़ाता है। भारत बनाम ओमान का यह अध्याय उसी किताब का नया पन्ना है।
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