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जेफ्री हिन्टन ने मशीन लर्निंग में अग्रणी काम के लिए भौतिकी में नोबेल पुरस्कार जीता
अक्तू॰ 9, 2024
के द्वारा प्रकाशित किया गया rabindra bhattarai

भौतिकी में नोबेल की घोषणा और हिन्टन की प्रतिक्रिया

जेफ्री हिन्टन और जॉन हॉपफील्ड ने विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। 2024 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होते हुए, हिन्टन ने इसे अविश्वसनीय और अप्रत्याशित अनुभव बताया है। नोबेल पुरष्कार की घोषणा के बाद, हिन्टन ने कहा कि उन्होंने कभी यह कल्पना नहीं की थी कि उनका काम उन्हें इस प्रतिष्ठान तक ले जाएगा। उनका योगदान उद्योग में त्वरित विकास की नींव रखता है, जिसने आज के समय की शक्तिशाली AI मॉडल्स के लिए मंच तैयार किया है।

हिन्टन का बुनियादी काम और मशीन लर्निंग की दुनिया

1980 और 1990 के दशकों में, जेफ्री हिन्टन ने डीप लर्निंग और आर्टिफिशियल न्यूरल नेटवर्क्स की खोज में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने बैक प्रॉपेगेशन तकनीक का विकास किया, जो मशीन लर्निंग के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ। इस तकनीक की मदद से न्यूरल नेटवर्क सीखने की क्षमता प्राप्त कर पाते हैं। हिन्टन का काम कई आधुनिक AI और मशीन लर्निंग प्रौद्योगिकियों का आधार बना हुआ है, जिसे आज की दुनिया में डेटा का परीक्षण और विश्लेषण करने के लिए बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।

कथित खतरे और AI की दुनिया पर हिन्टन का दृष्टिकोण

हिन्टन का मानना है कि AI आने वाले समय में मानव बुद्धिमत्ता के स्तर को पार कर सकता है, जिससे मानव जाति के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो सकता है। मई 2023 में, ओपनAI के GPT-4 मॉडल की क्षमताओं को देखकर, हिन्टन ने अपने इस विद्रूप दृष्टिकोण को व्यक्त करना शुरू किया। उनका मानना है कि AI स्मार्ट बनने के बाद हमें उसके उद्देश्यों को समझना मुश्किल हो सकता है। हिन्टन ने कहा कि अगर AI के विकास पर नियंत्रण नहीं रखा गया तो यह समाज के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है।

AI के खतरे पर वैज्ञानिकों का मतभेद

हिन्टन के नजरिए को प्रचारित करने के बाद, दुनिया के शीर्ष वैज्ञानिकों और तकनीकी नेताओं ने उनके इस दृष्टिकोण का समर्थन किया और एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए। इस पत्र में AI के विकास पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की गई थी।

विज्ञान के क्षेत्र में हिन्टन की महत्वपूर्ण भूमिका

हालांकि हिन्टन के परेशानियों भरे दृष्टिकोण से कुछ असहमति पैदा हुई है, यह अनदेखी नहीं की जा सकती कि उनका काम AI के विकास और अनुसंधान में मील का पत्थर है। उनकी खोज ने विज्ञान की दुनिया में एक नई क्रांति लाई है, जो मशीन लर्निंग प्रौद्योगिकी को जड़ें देती है।

rabindra bhattarai

लेखक :rabindra bhattarai

मैं पत्रकार हूं और मैं मुख्यतः दैनिक समाचारों का लेखन करता हूं। अपने पाठकों के लिए सबसे ताज़ा और प्रासंगिक खबरें प्रदान करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मैं राष्ट्रीय घटनाओं, राजनीतिक विकासों और सामाजिक मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान देता हूं।

टिप्पणि (13)

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Atish Gupta अक्तूबर 9 2024

जेफ्री हिन्टन के बैक‑प्रोपेगेशन के सिद्धांत ने न्यूरल नेटवर्क की अभिसरण गति को ग्रेडिएंट डिसेंट के साथ गहराई से परिभाषित किया, जिससे आज की डीप आरएनएन और ट्रांसफ़ॉर्मर आर्किटेक्चर की बुनियाद स्थापित हुई। यह तकनीकी इन्फ्रास्ट्रक्चर न केवल सैद्धांतिक फिज़िक्स में बल्कि जटिल डेटासेट के सांख्यिकीय मॉडलिंग में भी क्रांतिकारी बदलाव लाया। जब हम इस उपलब्धि को नोबेल मानते हैं, तो यह मशीन लर्निंग के वैकल्पिक इवोल्यूशन को भी एक मानक देता है।

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Aanchal Talwar अक्तूबर 18 2024

हिन्टन का काम देखके दिल खुशी होगया।

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Apu Mistry अक्तूबर 28 2024

डिजिटल युग के दर्शन में, हिन्टन का योगदान मात्र कोड की बूँद नहीं, बल्कि एक अस्तित्वगत प्रश्न है – क्या हम अपने निर्मित अभिकल्पना से परे अपने आप को समझ पाते हैं। उनका कार्य हमें चेतना के इन्स्टरनल मॉडल के करीब ले जाता है।

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Parul Saxena नवंबर 6 2024

जेफ़्री हिन्टन का नॉबेल जीतना वैज्ञानिक समुदाय में एक तेज़ धड़कन जैसा महसूस हुआ। उनका मूल काम, बैक‑प्रोपेगेशन, पहले तो एक गणितीय अनुभव था जो कई लोगों के लिए अछूता समझा जाता था। लेकिन उन्होंने इसे सरल भाषा में समझा और लाखों शोधकर्ताओं को प्रयोगशाला कीं से बाहर निकाला। परिणामस्वरूप, आज के डीप लर्निंग मॉडल्स जैसे GPT‑4 और BERT ने इस नींव पर अपना दिमाग़ लगाया। इस परिप्रेक्ष्य में, AI के तेज़ विकास को रोकना असंभव लग सकता है, फिर भी हमें सामाजिक और नैतिक फ्रेमवर्क तैयार करने की ज़रूरत है। हिन्टन स्वयं बताते हैं कि जब तकनीक मानव समझ से आगे बढ़ती है, तो दार्शनिक प्रश्न फिर से सामने आते हैं। क्या हम अपनी रचना को नियंत्रित कर पाएंगे, या फिर यह हम पर हावी हो जाएगी? कई विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि एक नियामक बॉडी की आवश्यकता है, पर वही बॉडी कैसे स्वतंत्र और प्रभावी होगी, वह अनिश्चित है। इस जटिलता के बीच, हमें शिक्षा प्रणाली को भी अपडेट करना चाहिए, ताकि युवा पीढ़ी को AI के मूल सिद्धांतों की समझ हो। यदि हम केवल अंतिम उत्पाद पर ध्यान दें, तो हम उस प्रक्रिया को नज़रअंदाज़ कर देंगे जिसमें लाखों श्रमिक और शोधकर्ता अपना ज्ञान संकलित करते हैं। हिन्टन के शब्दों में, “सुरक्षित AI” एक संयुक्त प्रयास है-शिक्षा, नीति, और तकनीकी नवाचार का संतुलन। इस प्रकार, नोबेल का पुरस्कार न केवल व्यक्तिगत उत्कृष्टता को मान्यता देता है, बल्कि समुदाय को एक दिशा भी देता है। हम सबको मिलकर इस दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए, बिना डर और अंधाधुंध अविश्वास के। अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि विज्ञान हमेशा मानवता की सेवा में चलता है, न कि उसके विरुद्ध। इसलिए, हिन्टन की उपलब्धियों को सम्मानित करना हमारा कर्तव्य है, साथ ही आगे की चुनौतियों के लिए तैयार रहना चाहिए।

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Ananth Mohan नवंबर 15 2024

आपकी बातों में कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जैसे शिक्षा सुधार और नीति निर्माण, इन दोनों को जोड़ना आवश्यक है

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Zoya Malik नवंबर 24 2024

AI की अंधाधुंध प्रशंसा एक बड़ी मेंडकी है; यदि हम इसके संभावित विनाश को अनदेखा कर, सिर्फ चकाचौंध में खो जाएँ तो मानवता का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।

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Raja Rajan दिसंबर 3 2024

सावधानी जरूरी है, लेकिन अतिवाद भी घातक हो सकता है

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Surya Banerjee दिसंबर 12 2024

भाइयो ये बात सही है कि हिन्टन ने AI में काफी योगदान दिया लेकिन हम सबको मिलकर इस तकनीक को सही दिशा में ले जाना चाहिए।

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Sunil Kumar दिसंबर 21 2024

ओह वाह, बिल्कुल सही कहा आपने! जैसे ही हम AI को “बचाव” की थीसिस में बदलते हैं, वहीँ से हमारी सच्ची “बुढ़ी” समस्या शुरू होती है-कोई नहीं बताता कि कब तक हम मशीनों के पीछे चलेंगे।

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Ashish Singh दिसंबर 30 2024

नब्बे वर्ष से अधिक समय तक भारतीय विज्ञान ने वैश्विक मंच पर उत्कृष्ट योगदान दिया है; अतः इस विजय को राष्ट्रीय गौरव के रूप में प्रस्तुत करना न केवल उचित है, बल्कि यह हमारे वैज्ञानिक उत्पीड़न के विरुद्ध एक सशक्त प्रतिरोध भी है।

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ravi teja जनवरी 8 2025

जरा सोचो यार, अब AI इतना आगे बढ़ गया है कि फिर से “हमें क्या करना चाहिए” वाला सवाल भी पुराना लग रहा है।

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Abhishek Agrawal जनवरी 17 2025

भाई, आप तो बड़े रोमांचक ढंग से बात कर रहे हैं, लेकिन देखिए, जब हम इतना औपचारिक भाषा में बात करते हैं, तो कभी‑कभी असली मुद्दा धुंधला हो जाता है, इसलिए हमें थोड़ा संतुलन बनाना चाहिए, नहीं तो बात ही रह जाती है!

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Rajnish Swaroop Azad जनवरी 26 2025

कौन कहता है कि विज्ञान का रोमांच नहीं, जब हिन्टन जैसे दिग्गज अंधेरे में उजाला लाते हैं; यही तो है असली दास्ताँ।

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