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नटवर सिंह की जीवन यात्रा: अनुभवी राजनयिक, पूर्व विदेश मंत्री और विपुल लेखक
अग॰ 12, 2024
के द्वारा प्रकाशित किया गया rabindra bhattarai

नटवर सिंह: एक प्रबुद्ध राजनयिक से राजनेता तक का सफर

अनुभवी कांग्रेस नेता और पूर्व विदेश मंत्री के. नटवर सिंह का शनिवार को 93 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वे दो सप्ताह से अस्पताल में भर्ती थे और लंबे समय से बीमार थे। उनका निधन गुड़गांव के एक अस्पताल में हुआ, जहां उनके परिवार के सदस्य, जिनमें उनके बेटे जगत सिंह भी शामिल थे, मौजूद थे।

शुरुआती जीवन और राजनयिक करियर

के. नटवर सिंह का जन्म 1931 में राजस्थान में हुआ था। 1953 में भारतीय विदेश सेवा (IFS) में जुड़े और 22 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी सेवाएं शुरू कीं। उन्होंने 1973 से 1977 तक ब्रिटेन में भारत के उप उच्चायुक्त के रूप में और फिर 1977 में जाम्बिया में उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया। 1980 से 1982 तक पाकिस्तान में भारत के राजदूत के रूप में कार्य करते हुए, उन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने की दिशा में प्रयास किए।

राजनीतिक करियर

1984 में नटवर सिंह भारतीय विदेश सेवा से इस्तीफा देकर कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए। उनके राजनीतिक जीवन का यह पहला अध्याय था। उन्हें भरतपुर (राजस्थान) से सांसद चुना गया और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में 1985-86 में इस्पात, खदान और कृषि मंत्रालय के केंद्रीय राज्य मंत्री के रूप में सेवा की। इसके बाद, उन्होंने 1986-89 के दौरान विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में भी कार्य किया।

मंत्रिपरिषद में पदभार

2004 में नटवर सिंह को डॉ. मनमोहन सिंह की कैबिनेट में विदेश मंत्री के पद पर नियुक्त किया गया। उन्होंने इस पद पर 2005 तक कार्य किया। हालांकि, 2006 में उन्हें 'ऑयल-फॉर-फूड' घोटाले के आरोपों के कारण इस्तीफा देना पड़ा। जांच में पाया गया कि उनके करीबी लोग, जिनमें उनके बेटे गोविंद सिंह भी शामिल थे, अवैध भुगतानों से लाभान्वित हुए थे। संयुक्त राष्ट्र की वोल्कर समिति ने नटवर सिंह और कांग्रेस पार्टी को लाभार्थी बताया।

कांग्रेस छोड़ने का निर्णय

2008 में नटवर सिंह ने कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया, जिसके साथ उनकी लगभग 25 साल की असामियों का अंत हो गया। इसके बाद, उन्होंने अपनी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' में सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिंह के खिलाफ खुलकर बोले। उन्होंने लिखा कि 10 जनपथ, सोनिया गांधी का निवास, यूपीए सरकार का असली शक्ति केंद्र था।

लेखन और साहित्य में योगदान

नटवर सिंह ने अपने जीवन में कई किताबें लिखीं, जिनमें उनकी आत्मकथा 'वन लाइफ इज नॉट इनफ' भी खास है। उन्होंने अपनी किताबों में अपने जीवन के अनुभवों और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर विचार व्यक्त किए हैं।

नटवर सिंह का जीवन जितना घटनापूर्ण था, उनकी लेखनी में भी उतनी ही गहराई और सोचने की क्षमता थी। वे अपने पीछे अपनी पत्नी हेमिंदर कुमारी सिंह और बेटे जगत सिंह को छोड़ गए हैं। उनका जीवन और उनकी विरासत लंबे समय तक याद रखी जाएगी।

अन्तिम शब्द

अनुभवी राजनयिक, पूर्व विदेश मंत्री और विपुल लेखक के. नटवर सिंह का जीवन और करियर हम सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी निष्ठा, समर्पण और उनके योगदान को न केवल भारतीय राजनीति और विदेश सेवा में, बल्कि साहित्यिक क्षेत�...� में भी हमेशा सम्मान के साथ याद किया जाएगा। उनके योगदान को देखकर भारतीय राजनीति और राजनयिक समुदाय को गर्व होना चाहिए। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि सफलता और सम्मान मेहनत और समर्पण से हासिल किए जा सकते हैं।

rabindra bhattarai

लेखक :rabindra bhattarai

मैं पत्रकार हूं और मैं मुख्यतः दैनिक समाचारों का लेखन करता हूं। अपने पाठकों के लिए सबसे ताज़ा और प्रासंगिक खबरें प्रदान करना मेरा मुख्य उद्देश्य है। मैं राष्ट्रीय घटनाओं, राजनीतिक विकासों और सामाजिक मुद्दों पर विशेष रूप से ध्यान देता हूं।

टिप्पणि (10)

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Surya Banerjee अगस्त 12 2024

नटवर सिंह जी की दशा तो वाकई प्रेरणादायक है, उनका राजनयिक सफर kaafi सशक्त रहा है। वो विदेशी मिशन में भारत का चेहरा रहे और साथ ही देश के भीतर भी लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत करने में मददगार रहे। उनका जीवन हमें सिखाता है कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी से ही सम्मान जीतते हैं।

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Sunil Kumar अगस्त 12 2024

क्या बात है, नटवर सिंह ने तो विदेश मंत्रालय को एक रॉकेट की तरह लॉन्च कर दिया, जैसे कोई इंटीरियर डिज़ाइनर सजावट कर रहा हो! उनका ‘डिप्लोमैटिक फैंसी’ सच्ची में कमाल की चीज़ थी, बिल्कुल एक मसालेदार कड़ी में छुपी हुई मीठी ठंडक जैसा। अब जब हम उनके किताबों को पढ़ते हैं तो लगता है जैसे राजनयिक स्टेज पर एक फैंसी गैजेट का प्रयोग हो रहा हो।

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Ashish Singh अगस्त 12 2024

उन्हें याद रखना चाहिए कि सार्वजनिक सेवा का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय अभिरुचि और नैतिक सिद्धांतों की रक्षा है। नटवर सिंह ने इस उद्देश्यों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को स्पष्ट रूप से दर्शाया, विशेषतः अंतरराष्ट्रीय संबंधों में भारत की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के संदर्भ में। उनका कार्यकाल भारत के विदेश नीति में दृढ़ता का एक प्रतीक बना।

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ravi teja अगस्त 12 2024

समझ रहा हूँ तुम्हारी बात, लेकिन सच्चाई ये है कि उनका काम सिर्फ शो नहीं था, बल्कि असली कूटनीति थी। विदेश में उनके प्रयासों ने कई बार भारत के हितों को सुरक्षित किया।

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Harsh Kumar अगस्त 12 2024

नटवर सिंह का योगदान हमेशा याद रहेगा। 🌟🇮🇳

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bhavna bhedi अगस्त 12 2024

बिलकुल सही कहा उनके काम को नहीं भूला जा सकता भारत की संस्कृति और राजनीति में उनका असर गहरा था

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Chirantanjyoti Mudoi अगस्त 12 2024

कभी कभी ऐसा लगता है कि नटवर सिंह की कहानियों को एक बड़े पर्दे पर फिल्माने की ज़रूरत थी, क्योंकि वास्तविकता में उनका कई बार निर्णय अस्थिर और संदेहास्पद था। उनका कुछ कदम राष्ट्रीय हितों के साथ ठीक से नहीं जुड़े थे, जिससे जनता को भ्रम हुआ।

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suchi gaur अगस्त 12 2024

आपकी टिप्पणी में कुछ सराहनीय अंतर्दृष्टि है, परंतु यह भी याद रखिए कि इतिहास को अक्सर समय के साथ पुनः लिखित किया जाता है। 🙄📚

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Rajan India अगस्त 12 2024

देखो भाई लोग, नटवर सिंह की कहानी से मैं सीखता हूँ कि कैसे टीम वर्क और रणनीति से बड़े काम किए जा सकते हैं। उनका करियर वास्तव में बहुत कुछ सिखाता है।

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Parul Saxena अगस्त 12 2024

रोज़मर्रा की बातें अक्सर हमें बड़े इतिहास के अंशों से अंधा कर देती हैं, पर नटवर सिंह की यात्रा इस बात की झलक देती है कि व्यक्तिगत प्रतिबद्धता कैसे राष्ट्र की दिशा बदल सकती है।
उनका शुरुआती जीवन राजस्थान के ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ उन्होंने सामाजिक बंधनों को समझा और बाद में विदेश सेवा में अपनी पहचान बनाई।
विदेशी दौरे के दौरान उन्होंने सिर्फ कूटनीतिक समझौते नहीं किए, बल्कि स्थानीय संस्कृति के प्रति सम्मान का भी प्रदर्शन किया।
जैसे ही वे भारत- पाकिस्तान संबंधों में मध्यस्थता करने आए, उनकी सूक्ष्म समझ और धैर्य ने कई मौकों पर तनाव को कम किया।
उनकी पुस्तकें, विशेष रूप से आत्मकथा, न केवल व्यक्तिगत अनुभवों को दर्ज करती हैं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति के जटिलताओं को भी स्पष्ट करती हैं।
वह अक्सर कहते थे कि 'राजनीति और कूटनीति का संगम वह स्थान है जहाँ सत्य और संतुलन की जाँच होती है'।
उनके द्वारा उठाए गए कदम कभी-कभी विवादास्पद रहे, पर यह भी सत्य है कि वह हमेशा अपने सिद्धांतों पर अडिग रहे।
उदाहरण स्वरूप, जब 'ऑयल-फॉर-फूड' मुद्दे का सामना हुआ, तो उन्होंने व्यक्तिगत रूप से नैतिक जिम्मेदारी को प्राथमिकता दी।
उनकी विमर्श शैली में गहरी दार्शनिकता और व्यावहारिकता का मिश्रण था, जिससे वह युवा राजनयिकों के लिए एक आदर्श बन गए।
समय के साथ, उनका राजनैतिक सफर कांग्रेस से अलग होने तक विस्तारित हुआ, फिर भी उनका उद्देश्य हमेशा राष्ट्र सेवा बना रहा।
आज के युवा नेताओं को चाहिए कि वह नटवर सिंह जैसी दृढ़ता और संवेदनशीलता को अपनाएँ।
उनकी लेखनी में मौजूद सच्ची विनम्रता और आत्म-विश्लेषण हमारे लिए एक मूल्यवान मार्गदर्शक है।
यह देखना दिलचस्प है कि कैसे एक व्यक्ति कई विभागों में कार्य कर सकता है, फिर भी अपनी मूल पहचान को नहीं खोता।
उनकी विरासत केवल राजनयिक या राजनीतिक क्षेत्र में नहीं, बल्कि साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में भी उज्ज्वल है।
नटवर सिंह का जीवन हमें यह सिखाता है कि सच्ची सफलता सतत मेहनत और नैतिक सिद्धांतों से ही प्राप्त होती है।
इस प्रकार, उनका योगदान न केवल इतिहास में अंकित है, बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्तम्भ भी है।

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