प्रसिद्ध राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के तीसरे कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण बदलावों की भविष्यवाणी की है। किशोर का मानना है कि मोदी 3.0 'धमाके के साथ शुरू होगा' और इसमें पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने और राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण प्रतिबंध लगाने जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।
किशोर के अनुसार, मोदी सरकार केंद्रीय स्तर पर अधिक शक्ति और संसाधनों का केंद्रीकरण कर सकती है, जिससे राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। उन्होंने विशेष रूप से उल्लेख किया कि वर्तमान में राज्यों के पास राजस्व के तीन महत्वपूर्ण स्रोत हैं: पेट्रोलियम, शराब और भूमि। किशोर को आश्चर्य नहीं होगा अगर पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है। इस कदम से राज्यों के राजस्व पर काफी असर पड़ेगा क्योंकि वे कर राजस्व के लिए केंद्र सरकार पर अधिक निर्भर हो जाएंगे।
किशोर ने यह भी अनुमान लगाया कि केंद्र सरकार राज्यों को संसाधन हस्तांतरित करने में देरी कर सकती है और वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन (FRBM) मानदंडों को सख्त कर सकती है। इसके अतिरिक्त, किशोर ने भारत के भू-राजनीतिक मुद्दों को संभालने में अधिक मजबूती दिखाने की भविष्यवाणी की, जिसमें कूटनीतिक दृढ़ता में वृद्धि हो सकती है जो घमंड की सीमा तक पहुंच सकती है।
प्रशांत किशोर ने कहा कि राज्यों के पास वर्तमान में राजस्व के तीन प्रमुख स्रोत हैं - पेट्रोलियम, शराब और भूमि। उन्होंने संकेत दिया कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जा सकता है। यदि ऐसा होता है, तो इससे राज्यों के राजस्व पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
पेट्रोलियम उत्पादों पर वर्तमान में केंद्रीय उत्पाद शुल्क और राज्य वैट लगता है। यदि इन्हें जीएसटी में शामिल किया जाता है, तो राज्यों को इन उत्पादों पर अपने कर लगाने का अधिकार नहीं होगा। इससे राज्यों के राजस्व में कमी आ सकती है और वे कर संग्रह के लिए केंद्र पर अधिक निर्भर हो जाएंगे।
हालांकि, पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में शामिल करने से देश भर में ईंधन की कीमतों में एकरूपता आ सकती है और कर अनुपालन में सुधार हो सकता है। लेकिन राज्यों को इस बदलाव के लिए तैयार करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य होगा।
किशोर ने अनुमान लगाया है कि मोदी सरकार राज्यों की वित्तीय स्वतंत्रता पर महत्वपूर्ण प्रतिबंध लगा सकती है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार राज्यों को संसाधन हस्तांतरित करने में देरी कर सकती है और वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन (FRBM) मानदंडों को सख्त कर सकती है।
FRBM अधिनियम राज्य सरकारों द्वारा उधार लेने और घाटे को नियंत्रित करने के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करता है। यदि इन मानदंडों को सख्त किया जाता है, तो राज्यों को अपने खर्च और उधार को सीमित करना पड़ सकता है। यह उनकी वित्तीय लचीलेपन को प्रभावित कर सकता है और विकास परियोजनाओं के वित्तपोषण की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
इसके अतिरिक्त, यदि केंद्र सरकार धन हस्तांतरण में देरी करती है, तो राज्यों को अपनी वित्तीय आवश्यकताओं को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। यह उनकी योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को प्रभावित कर सकता है।
प्रशांत किशोर ने भारत के भू-राजनीतिक रुख में बदलाव की भी भविष्यवाणी की है। उन्होंने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को संभालने में अधिक आक्रामक हो सकता है और कूटनीतिक दृढ़ता में वृद्धि हो सकती है जो घमंड की सीमा तक पहुंच सकती है।
पिछले कुछ वर्षों में, भारत ने चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ अपने संबंधों में अधिक मजबूती दिखाई है। सीमा विवादों और सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए भारत ने कड़ा रुख अपनाया है। भविष्य में, भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए और अधिक दृढ़ता दिखा सकता है।
हालांकि, अत्यधिक आक्रामकता से क्षेत्रीय तनाव बढ़ सकता है और कूटनीतिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत को अपनी कूटनीतिक शक्ति का विवेकपूर्ण उपयोग करना होगा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सहयोग बनाए रखना होगा।
प्रशांत किशोर द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल के लिए किए गए अनुमान महत्वपूर्ण नीतिगत बदलावों की ओर इशारा करते हैं। पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाना और राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता पर अंकुश लगाना केंद्र-राज्य संबंधों को प्रभावित कर सकता है।
इन बदलावों को लागू करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विस्तृत विचार-विमर्श और सहयोग की आवश्यकता होगी। राज्यों की चिंताओं को दूर करना और उन्हें वित्तीय समायोजन के लिए तैयार करना महत्वपूर्ण होगा।
भू-राजनीतिक मोर्चे पर, भारत को अपनी बढ़ती कूटनीतिक शक्ति का उपयोग करते हुए सतर्क और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अत्यधिक आक्रामकता से बचना और सहयोग को बढ़ावा देना महत्वपूर्ण होगा।
समग्र रूप से, प्रशांत किशोर के अनुमान मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में उल्लेखनीय बदलावों की संभावना को रेखांकित करते हैं। इन बदलावों का प्रभाव व्यापक होगा और भारतीय राजनीति और अर्थव्यवस्था के भविष्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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